60 और 70 के दशक में मुम्बई में संगठित अपराधी गिरोहों का जन्म हुआ था. वे पनपे थे. वे स्थापित हुए थे. यह भारत में माफिया युग का आरम्भ था. 70 से 90 के दशकों में गिरोह सरगना तो बहुत से हुए लेकिन उनमें असली खिलाड़ी थे ये चार. कहना चाहिए कि ये उस वक्त के अंडरवर्ल्ड के गुरु थे. इनके बारे में बहुत थोड़ी जानकारी लोगों को है. लेकिन उनके झूठे किस्से-कहानियाँ सच से ज्यादा चलन में रहे हैं. मुम्बई अंडरवर्ल्ड के ये चार इक्के थे, करीम लाला, वरदराजन मुदलियार, हाजी मिर्जा मस्तान, और लल्लू जोगी! 'अंडरवर्ल्ड के चार इक्के' में इन गिरोह सरगनाओं की जिंदगी के हर रंग की छाप है. उनके रूदन से खुशियों तक, उनके पारिवारिक जीवन से कामकाज तक, उनके उदय से अस्त होने तक... सब कुछ इसमें है. यह किताब एक ऐसा दस्तावेज है, जिसमें पहली बार इन सरगनाओं के बारे में सत्य का उद्घाटन पूरी प्रामाणिकता के साथ किया है.