अमोध कुमार श्रीवास्तव की यह कृति भावनाओं, विचारों और जीवन के सूक्ष्म अनुभवों की एक मार्मिक प्रस्तुति है। काव्य और गद्य के सुंदर ताने-बाने में बुनी गई यह पुस्तक, आपके मन के उन कोनों को छूती है जहाँ अक्सर शब्द नहीं पहुँचते।
यदि आप ऐसे शब्दों की तलाश में हैं जो आपकी अनकही भावनाओं को अभिव्यक्ति दें — तो उधेड़-बुन आपके भीतर की संवेदनाओं को स्वर देने वाली एक प्रेरक पुस्तक है।
पढ़िए "उधेड़-बुन" — अपने ही अंतर्मन से जुड़ने की एक सजीव अनुभूति।
लेखक के बारे मे
लेखक वह नहीं होता जो केवल गद्य या पद्य में शब्दों को ढाले — लेखक वह होता है जो भावनाओं की धड़कनों को सुन सके, और उन्हें बिना शोर के काग़ज़ पर महसूस करा सके। अमोद कुमार श्रीवास्तव, जिन्हें लोग एक लेखक के रूप में जानते हैं, स्वयं को इस उपाधि से परे मानते हैं। उनका कहना है — "मैं लेखक नहीं हूँ, मैं तो बस शब्दों और भावनाओं को उकेरता हूँ। यदि उससे कोई कहानी बन जाए, तो अच्छा; कविता बन जाए, तो भी अच्छा; और यदि कुछ भी न बने, तो भी भाव अवश्य जन्म लेता है।"
यह "उधेड़-बुन" उनकी तीसरी कृति है। इससे पहले प्रकाशित "अभिव्यक्ति" और "पीले पत्ते" दो काव्य-संग्रह थे — जहाँ कविताएँ जीवन के अनुभवों की आत्मा बनकर उभरी थीं। परंतु यह नवीनतम कृति, केवल कविता तक सीमित नहीं — यह एक भावनात्मक कोलाज है जिसमें कविताएँ, कहानियाँ और संस्मरण – तीनों ही विधाएँ आत्मा की गहराइयों से एकत्र होकर प्रस्तुत हुई हैं।
पेशे से मानव संसाधन प्रबंधक और मूलतः वाराणसी निवासी अमोद कुमार श्रीवास्तव के शब्दों में बनारस की बेबाकी और अल्हड़पन की झलक साफ़ दिखाई देती है। उनकी लेखनी में सादगी है, पर वह सादगी सतह की नहीं — वह सादगी उस गहराई की है जहाँ भावनाएँ शोर नहीं करतीं, बल्कि धीरे-धीरे आत्मा में उतरती हैं।
"उधेड़-बुन" केवल पढ़ने की नहीं, महसूस करने की पुस्तक है। यह उन पाठकों के लिए है जो शब्दों से अधिक उनके पीछे छिपी नमी को पढ़ना जानते हैं। यह संग्रह उस यात्रा का दस्तावेज़ है जो भीतर की ओर जाती है — जहाँ संवेदनाएँ कहानी बनती हैं, यादें कविता बनती हैं, और हर अनुभव एक मौन संवाद में ढल जाता है।