लगभग 37 साल के बैंकिंग सेवा काल के दौरान एक दशक के आसपास का समय मैंने ट्रेड यूनियन के केंद्रीय पदाधिकारियों के बीच गुजारी है। मेरा कहानी संग्रह ‘नरेंद्र बाबू का मुकदमा’ बैंकिंग सेवाकाल के दौरान के अनुभवों पर आधारित है। इस संग्रह की अधिकांश कहानियाँ बैंकिंग क्षेत्र के क्रियाकलापों से जुड़ी हुई हैं, जिन्हें काल्पनिक चरित्रों के माध्यम से दर्शाने की कोशिश की है मैंने। ‘नरेंद्र बाबू का मुकदमा’ एक ऐसे प्रबंधक की कहानी है, जिसे सिर्फ इसलिए दंडित कर दिया गया था कि उसने बैंक के उच्च अधिकारी के लिए शाही लीची की टोकरी स्वयं न पहुँचाकर एक चतुर्थ वर्गीय कर्मचारी के हाथ भेज दिया था। ‘पटाया की सैर’ बैंकिंग उद्योग में थर्ड पार्टी प्रोडक्ट बेचने वाली कंपनियों के दबदबे की कहानी है। ‘पटाया की सैर’ के लिए किस तरह उच्च प्रबंधन द्वारा अपने मातहत अधिकारियों को प्रताड़ित किया जाता है और अधिकारियों द्वारा कैसे ग्राहकों का दोहन किया जाता है, बैंक के नफा-नुकसान की परवाह किए बिना, रेखांकित करने का प्रयास है। बैंकों में आए दिन समारोहों के नाम पर फैली कुव्यवस्था की कहानी है ‘शताब्दी समारोह’। कहानी ‘मैडम पी सी शॉ’ उच्च प्रबंधन स्तर के उच्च अधिकारी की पत्नियों द्वारा शाखा प्रबंधकों पर आतंक का लेखा-जोखा है। कहानी ‘ओटीएस प्रपोजल की अंतर्कथा’ एक कहानी मात्र नहीं है, बैंकों में व्याप्त भ्रष्टाचार की जीती-जागती तस्वीर है। स्वागत, अध्यक्ष महोदय का हवामहल, संगठन की आमसभा, संगठन की आपात बैठक, उपरोक्त कहानियाँ ट्रेड यूनियन के ध्वजवाहकों के वास्तविक चरित्र का विवरण मात्र नहीं हैं, सदस्यों की लाचारगी का ब्योरा भी प्रस्तुत करती प्रतीत होंगी। पाठक ही हमारी कहानियों के समीक्षक हैं। कहानी संग्रह की कहानियों पर पाठकों के विचारों का स्वागत करेंगे। पाठकों की प्रतिक्रियाएं ही मुझे थोड़ा और बेहतर लिखने के लिए प्रेरित करती हैं।
अनिल कुमार
खंडवा
17.05.2025