अराजकता का माहौल था जहां बड़ी मछलियां छोटी मछलियों को निगल रहीं थीं। अंग्रेजी,
फ्रांसीसी और पुर्तगाली घुसपैठिए पूरे भारत में लूटपाट कर रहे थे। जमींदार गरीबों का
शोषण कर रहे थे और बरगी तथा अराकन लुटेरे आतंक का पर्याय बन चुके थे। और इस
सबमें सबसे अधिक आतंकित थी भारत की आधी आबादी अर्थात औरतें। अत्याचारी
पितृसत्तात्मक समाज उन्हें पराभूत कर रहा था। बहुविवाह, बाल विवाह, विधवा शोषण एवं
सती जैसी कुप्रथाएं आम थीं। ऐसे मनहूस समय में अपने ससुराल द्वारा सताई और बेसहारा
छोड़ी गई एक जवान लड़की प्रफुल्या, एक जन प्रिय एवं शक्तिशाली रानी बनकर उभरी
जिसे नाम मिला "देवी चौधरानी"। उसने अंग्रेजो और अन्य अत्याचारी शक्तियों का
प्रतिकार किया और एक क्रांति का आगाज़ किया। देवी चौधरानी गरीबों एवं आम जनों की
मसीहा बन गई और उसने उन्हें कष्ट एवं अत्याचार से मुक्त कराया।
प्रसिद्ध ग्राफिक नॉवलिस्ट लेखक शमिक दासगुप्ता द्वारा लिखित "देवी चौधरानी" 1884
में श्री बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय द्वारा रची गई मशहूर बंगाली रचना का अनुरूपण है जिसे आज
के परिवेश एवं समय को ध्यान में रख कर रचा गया हैं।