ऐसे में वह और क्या करे? घर में बैठी उकता जाती है। उसकी एकमात्र सखी सुलेखा का पति धर्मेंद्र भी सुबहसुबह बहुत व्यस्त रहता है। साढ़े नौ बजे सुलेखा के घंटी दबाने से पूर्व ही रीता अपने घर से बाहर आ जाती है और दोनों निकल पड़ती हैं किसी भी दिशा में
पुस्तक से
सुश्री दिव्या माथुर, एफ.आर.एस.ए. वातायनयूरोप की संस्थापक, रॉयल सोसाइटी ऑफ आर्ट्स की फेलो, आशा फाउंडेशन की संस्थापकसदस्य, ब्रिटिश लाइब्रेरी और टेट मॉडर्न की 'फ्रेंड' हैं, पद्मभूषण मोटुरी सत्यनारायण लेखन सम्मान, वनमाली कथा सम्मान तथा अनेक प्रतिष्ठित सम्मानों से अलंकृत; 'इक्कीसवीं सदी की प्रेरणात्मक महिलाएँ', आर्ट्स काउंसिल ऑफ इंग्लैंड की 'वेटिंगरूम', 'एशियंस हूज हू', 'सीक्रेट्स ऑफ वर्ड्स इंस्पिरेशनल वूमेन' जैसे ग्रंथों में सम्मिलित प्रतिष्ठित इंप्रेसारियो, बहुपुरस्कृत लेखिका, उपन्यासकार, बाल पुस्तकों की अनुवादक और संपादक, जिनके आठ कहानीसंग्रह, आठ कवितासंग्रह, तीन उपन्यास 'तिलिस्म' और 'शाम भर बातें' (कई पाठ्यक्रमों में शामिल), बालउपन्यास 'बिन्नी बुआ का बिल्ला' और सात संपादित कहानी/काव्यसंग्रह प्रकाशित हैं।
रचनाओं पर लगभग पचास शोध हो चुके हैं/हो रहे हैं। दूरदर्शन ने उनकी कहानी 'साँप सीढ़ी' पर टेलीफिल्म बनाई है। निखिल कौशिक द्वारा निर्मित 'घर से घर तक का सफर : दिव्या माथुर' अनेक फिल्म फैस्टिवल्स में प्रदर्शित । https://www.divyamathur.com