मूकमाटी में साधारण सी प्रतीत होने वाली माटी के माध्यम से साधारण स्तर से उठना और सर्वोत्कृष्ट बिन्दु पर प्रतिष्ठापना, जीवन के मर्म का हृदयंगम साथ ही तप, समर्पण, लोककल्याण और उत्सर्ग के मार्ग को भी स्पष्ट किया गया है। माटी के अन्दर ऐसा गुण है जो किसी के गुण को नष्ट नहीं करती अपितु यथासम्भव बीज के गुण को निखारती है, अमृतत्व प्रदान करती है इसी माटी को प्रमुख पात्र बनाकर मूकमाटी में रचनात्मक रमणीयता एवं जीवन उत्थान की सूत्रात्मक भव्यता का भाषिक प्रस्तुतीकरण है। इसे अपनी चमत्कारिणी अभिज्ञान-प्रज्ञा से आचार्य श्री विद्यासागर ने मौलिक वैशिष्ट्य से अभिमण्डित किया है । कृति जीवन को परिष्कृत एवं सांस्कृतिक बनाने में सक्षम है।
- प्रकाशक
"डॉ. नीलम जैन
शिक्षा : एम.ए., पीएच.डी. ।
यूरोप, अमेरिका आदि विश्व के अनेक देशों की साहित्यिक यात्राएँ। स्टेट यूनिवर्सिटी अमेरिका की विजिटिंग स्कॉलर। जैन दर्शन एवं रामकथा विशेषज्ञ के रूप में अनेक राष्ट्रीय अन्तर्राष्ट्रीय संगोष्ठी में ससम्मान आमन्त्रित। देश-विदेश की शताधिक संगोष्ठियों में सहभागिता ।
पुरस्कृत पुस्तकें : प्राकृत भाषा में रामकथा, सराक क्षेत्र, समाज निर्माण में महिलाओं का योगदान, माटी का सौरभ, क्रान्ति वीर : कुँवर सिंह, जैन लोक साहित्य में नारी, संस्कृति एवं सभ्यता के उन्नायक ऋषभदेव, विदुषी विद्योत्तमा, जैन रिलिजन एंड साइंस, दिसम्बर के दिगम्बर, वर्तमान परिप्रेक्ष्य में तीर्थंकर महावीर, तम्बाकू : ज़हर ही ज़हर, शाकाहार: एक जीवन पद्धति। विश्वविद्यालयों में साहित्य पर शोध पाठ्यक्रमों में रचनाएँ। प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में 100 से भी अधिक रचनाएँ प्रकाशित। 53 पुस्तकों की प्रस्तावना लेखक। जैन दर्शन सार (तीन भाग) का सम्पादन । 12 पुस्तकें प्रकाशित। अनेक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थों का सम्पादन ।"