इस पुस्तक में नारी महिमा का गुणगान करते हुए कवि ने अपनी रोचक और ज्ञानवर्धक रचनायें प्रस्तुत की है भारतीय समाज में महिलाएं परिवार की मुख्य ‘‘धुरी’’ होती हैं, जो कि ‘‘अन्नपूर्णा’’ के ऐश्वर्य से अलंकृत और सुशोभित है । भारतीय संदर्भ में देखा जाए तो लगभग 65 प्रतिशत महिलाएं कृषि एवं पशुपालन का कार्य करते हुए देश की अर्थव्यवस्था के विकास को बढ़ावा देती हैं । महिलाएं ही संस्कृति, संस्कार और परम्पराओं की वास्तविक संरक्षिका होती हैं । वे पीढ़ी दर पीढ़ी इनका संचारण और संरक्षण करती रहती हैं । कहा भी गया है कि- सशक्त महिला, सशक्त समाज की आधारशिला है । माता बच्चें की प्रथम शिक्षिका है, जो बच्चें के सर्वांगीण विकास के लिए उत्तरदायी है । आज भी नारी पुरुषों के समान ही सुशिक्षित, सक्षम और सफल है, चाहे वह क्षेत्र सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक, खेल, कला, साहित्य, इतिहास, भूगोल, खगोल, चिकित्सा, सेवा, मीडिया या पत्रकारिता कोई भी हो । नारी की उपस्थिति, योगदान, योग्यता, उपलब्धियाँ, मार्मिकता और सृजनशीलता स्वयं एक प्रत्यक्ष परिचय देती हैं । परिवार और समाज को संभालते हुए राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर नारी ने हमेशा से ही विजय-पताका लहराते हुए राष्ट्र-निर्माण और विकास में अपना विशेष और अभूतपूर्व योगदान दिया है। यह अलग बात है कि नारी ने अपने निज स्वरूप को अभी तक पूर्ण रूप से नहीं पहचाना है । इस पुस्तक के माध्यम से नारी के अन्नपूर्णा स्वरूप को पहचानकर महिलाओं को सशक्त बनाने और उनमें चेतना का स्वर जाग्रत करने का अथक प्रयास किया है ।