Audatya Ke Kavi Kedarnath Agarwal | औदात्य के कवि केदारनाथ अग्रवाल

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औदात्य के कवि केदारनाथ अग्रवाल उदात्त की अवधारणा

केदारनाथ अग्रवाल के काव्य में उदात्त तत्व के अन्वेषण से पूर्व सर्वप्रथम यह आवश्यक है कि हम उदात्त की अवधारणा एवं स्वरूप को भली-भांति समझने का प्रयास करें। उदात्त की अवधारणा को उसकी संपूर्णता में समझने के लिए उदात्त तत्व से संबंधित भारतीय एवं पश्चात्य दोनों दृष्टियों का अनुशीलन करना हमारे लिए श्रेय होगा। पाश्चात्य साहित्य चिंतन में उदात्त सिद्धांत के प्रवर्तन का श्रेय महान चिंतक लॉजाइनस को दिया जाता है। पाश्चात्य काव्यशास्त्र में लोंजाइनस से पूर्व काव्यशास्त्रीय चिंतन की एक सुदृढ़ परम्परा का विकास देखने को मिलता है। लोंजाइनस से पूर्व प्लेटो तथा अरस्तू ने पाश्चात्य साहित्य चिंतन को ऊंचाइयों तक पहुंचाया। लोंजाइनस ने इन दोनों की अवधारणाओं को आत्मसात् किया और नए काव्यशास्त्रीय विचारों को प्रस्तुत किया। जहाँ प्लेटो ने साहित्य को 'उत्तेजक' माना, अरस्तू ने 'विरेचक' माना, वहीं लोंजाइनस वास्तविक साहित्य 'उदात्त' मानते हैं। उनकी यह अवधारणा अत्यंत युगांतकारी सिद्ध हुई। यहां तक कि आगे चलकर उसे शास्त्रवाद, स्वच्छंदतावाद, आधुनिकतावाद और यथार्थवाद से जोड़कर भी देखा जाने लगा। लोंजाइनस ने औदात्य को साहित्य के सभी गुणों में महान माना और बताया कि यही वह गुण है जो अन्य छोटी-मोटी त्रुटियों के बावजूद साहित्य को सच्चे अर्थों में गरिमापूर्ण एवं प्रभावपूर्ण बना देता है।

भारतीय साहित्यशास्त्र में भी औदात्य की चर्चा किसी न किसी रूप में होती रही है। भारतीय काव्य चिंतन का फलक भी अत्यंत व्यापक है। यदि उदात्त को एक सार्वभौमिक सिद्धांत माना जाए तो इसके सूत्र भारतीय काव्य सिद्धांतों में भी आसानी से खोजे जा सकते हैं। किंतु सत्य यह भी है कि भारतीय काव्यशास्त्र में पाश्चात्य काव्यशास्त्र की तरह उदात्त तत्व के परिप्रेक्ष्य में किसी व्यापक सिद्धांत की स्थापना प्रकाश में नहीं आती। चूंकि एक सिद्धांत के रूप में उदात्त के प्रवर्तन का श्रेय पाश्चात्य चिंतक लोनजाइनस को दिया जाता है, अतः उदात्त की अवधारणा को समग्रतः समझने के लिए हमें पाश्चात्य एवं भारतीय दोनों ही चिंतन परम्पराओं में औदात्य की अवधारणा एवं उसके विकास पर दृष्टिपात करना होगा।

1. उदात्त तत्व पाश्चात्य विचारकों की दृष्टि में

उदात्त शब्द अंग्रेजी के सबलाइम (Sublime) शब्द का हिंदी रूपांतरण है। पाश्चात्य काव्यशास्त्र में इस शब्दावली पर दीर्घकालीन परंपरा से विचार-विमर्श होता आया है। सिद्धांत रूप में इस अवधारणा का प्रथम प्रस्तोता यूनानी चिंतक लॉजाइनस को माना जाता है। यद्यपि लोंजाइनस से पूर्व भी पाश्चात्य काव्यशास्त्र में उदात्त के विषय.......................

#ParimalPrakashan

Parimal Prakashan (Prayagraj)

परिमल प्रकाशन प्रयागराज

Ankur Sharma


Ratings and reviews

4.5
2 reviews
Ankur Sharma
April 15, 2025
सुंदर लेख
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About the author

लेखक परिचय

नाम : डॉ० सुधीर कुमार अवस्थी (Dr.Sudhir Kumar Singh)

जन्मतिथि: 13 मार्च 1983

जन्म स्थान : तिंदवारी, जनपद-बाँदा

(उत्तर प्रदेश)

पिता का नाम: श्री रमाशंकर अवस्थी 'पथिक'

माता का नाम: श्रीमती हेमकिरण अवस्थी

सम्प्रति : असि. प्रोफेसर एवं प्रभारी हिन्दी विभाग, मथुरा प्रसाद महाविद्यालय, कौंच (जालौन) (उ.प्र.)।

अनुभव : माध्यमिक एवं उच्च शिक्षा स्तर पर

14 वर्षों का अध्यापन अनुभव। पुस्तकों एवं प्रतिष्ठित शोध पत्रिकाओं में 20 से अधिक आलेख प्रकाशित। राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर की 30 से अधिक संगोष्ठियों / ई संगोष्ठियों में प्रतिभागिता एवं शोधपत्र प्रस्तुतीकरण।

पत्राचार का पता : 1991/1 कालिदास पुरम्, नया पटेल नगर, उरई (जालौन) उ.प्र. 285001

सम्पर्क : 9415176057

ईमेल: [email protected]

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