Jeevan Ke Solah Sanskar

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जीवन के सोलह संस्कारः संस्कार का सामान्य अर्थ है संस्कृत करना या शुद्ध करना उपयुक्त बनाना या सम्यक करना आदि किसी साधारण या विकृत वस्तु को विशेष क्रियाओं द्वारा उत्तम बना देना ही उसका संस्कार है। इस साधारण मनुष्य के जीवन को विशेष प्रकार की धार्मिक क्रियाओं-प्रतिक्रियाओं द्वारा उत्तम बनाया जा सकता है। जिससे वह जीवन में परम उत्कर्ष को प्राप्त कर सके यह विशिष्ट धार्मिक क्रियाएं ही "संस्कार' "है। जिस प्रकार खान से सोना हीरा आदि निकलने पर उसमें चमक प्रकाश आदि सौंदर्य के लिए उसे तपाकर - तराशकर या उसका मल हटाकर एवं चिकना करना आवश्यक होता है। ठीक उसी प्रकार मनुष्य में मानवीय शक्ति का आधान होने के लिए उसे सुसंस्कृत करना संस्कारवान बनाने के लिए उसका पूर्णतया विधिवत संस्कार संपन्न करना आवश्यक है विधि पूर्वक संस्कार साधन से दिव्यज्ञान उत्पन्न करके आत्मा को परमात्मा के रूप में प्रतिष्ठित करना ही संस्कार है। मानव जीवन प्राप्त करने की सार्थकता भी इसी में है। संस्कार मनुष्य को पाप और आज्ञान से दूर रखकर आचार-विचार और ज्ञान विज्ञान से संयुक्त करते हैं। संस्कारों से आत्मा की शुद्धि होती है विचार व कर्म शुद्ध होते हैं इसीलिए संस्कारों की आवश्यकता है। अतः गर्भस्थ शिशु से लेकर मृत्यु पर्यंत जीव के मलों का शोधन सफाई आदि कार्य विशिष्ट विविध क्रियाओं को मंत्रों से पूर्ण करने को संस्कार कहा जाता है।

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O autoru

डॉ मिश्रा जी का जन्म 1967 में काशी वाराणसी के कुढवां नामक ग्राम स्थान पर एक ब्राह्मण कुल में हुआ है। उनके दादाजी पंडित लालमणि मिश्रा आचार्य जी जो कर्मकांड एवं ज्योतिष के प्रकांड पंडित थे अतः ज्योतिष शास्त्र में इन्हें पैतृक विरासत में ही मिल गया। प्रारंभिक शिक्षा गांव में पूर्ण करने के बाद में संस्कृत की शिक्षा हेतु प्रयागराज गए फिर ज्योतिष एवं कर्मकांड की उच्च शिक्षा हेतु काशी के संपूर्णानंद विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया वहां से अच्छे अंकों में ब्याकरणाचार्य एवं ज्योतिषाचार्य करने के बाद एक व्यावसायिक ज्योतिषी बन गए एवं जिज्ञासा कि बिपाशा अब भी शांत न हुई तो डॉ मिश्रा जी ने संपूर्णानंद विश्वविद्यालय से विद्या वारिधि पीएचडी काशी की उपाधि हासिल की। डॉ मिश्रा जी ने वैदिक ज्योतिष एवं संस्कृत की ही औपचारिक शिक्षा ली थी परन्तु स्वाध्याय एवं पैतृक विरासत से ज्योतिष की कई रहस्यमई कलाएं अर्जित कर ली जो सामान्य ज्योतिषियों के बूते से बाहर है सम्यक मार्गदर्शन ग्रहण का सूक्ष्म से सूक्ष्म विश्लेषण मधुर एवं सुमधुर मंत्र उच्चारण तथा सारगर्भित दर्शन आदि अंगूठी योग्यताओं के कारण भारत ही नहीं वरन पूरे विश्व में लोक. प्रियता हासिल अब डॉ मिश्रा जी ज्योतिष एवं कर्मकांड के एक प्रशिक्षक भी बन गए हैं अत इन्हें आदर से आचार्य भी कहते हैं प्रत्यक्ष परोक्ष रूप में हजारों से भक्त आचार्य जी से ज्योतिष की शिक्षा भी ले रहे हैं और मां सावित्री ज्योतिष अनुसंधान केंद्र के संस्थापक डॉ मिश्रा जी अपने संस्था के संचालन में अपनी सहयोगी शिक्षकों को भी मदद लेते हैं डॉ मिश्रा जी एक कुशल लेखक प्रभावशाली वक्ता के साथ-साथ अच्छे मार्गदर्शन भी हैं।

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