<p>ये 'झरोखे' हैं अंतर्मन के। जीवन की विविध अनुभूतियों की झलक प्रस्तुत करते विविध आकार-प्रकार के झरोखे। जीवन की इस विविधता का आरंभ मानव मन से होता है। कई बार अनजाने ही मनुष्य अपने भीतर अनेक रंग लिये जीता है-कुछ परिवार के लिए, कुछ समाज के लिए और कुछ स्वयं के लिए। एक ही परिवार के विभिन्न सदस्य एक-दूसरे के साथ होकर भी विविध होते हैं। परिवार की ऐसी ही खट्टी-मीठी विविधता में बँधी है 'झरोखे' की पहली कहानी 'बहनें", जिसमें तीन बहनों के तीन अलग-अलग व्यक्तित्व पिरोए हैं। </p><p>इसी प्रकार एक झरोखा है, 'श्याम रंग दे'- त्वचा के रंग के आधार पर प्रेम और विवाह के लिए दो चरित्रों की सोच की विविधता दरशाती है। 'फिर मिल गए', 'चलो भाग चलें', 'मोहे रंग दे', 'नेताजी' और 'नायिका' समाज की विविध किंतु सामान्य परिस्थितियों को दरशाते झरोखे हैं तो कुछ झरोखों से समाज का विद्रूप रूप दिखाई देता है, जिनमें 'डर', 'नशा', 'तेजाब', 'लड़की', 'मोल', 'नंबर का चक्कर' और 'गंदी नहीं' जैसी कहानियाँ हैं। </p><p>इन्हीं के बीच कुछ झरोखे पशुपतिनाथ को समर्पित हैं, जिनमें संदेश है, समस्त प्राणियों के साथ सामंजस्य बनाने एवं पर्यावरण संरक्षण का। इनमें सम्मिलित कहानियाँ हैं- 'काली बिल्ली की व्यथा, "एक था जंगल' और 'बिन पंछी जीवन'। </p><p>जीवन के ये झरोखे विविध परिस्थितियों के प्रति लेखिका की दृष्टि को भी प्रस्तुत करते हैं-जो कभी प्रश्न बनते हैं तो कभी समाधान प्रस्तुत करते हैं।</p>