उसके घर छोड़ते जाते समय बहू और बेटे का हंसता हुआ चेहरा उसे याद आ गया। उसकी आंखे छलक पड़ी। शाम के 7 बच गए थे दिल फिर भी मानने को तैयार नहीं था की उसका बेटा उसे ऐसे छोड़ सकता है। जैसे जैसे समय बीत रहा था दिल पर दिमाग हावी होता जा रहा था। मुन्ना के बापू के जाने के बाद उसने घर बेटे के नाम कर दिया था तो क्या गलत किया था। उसी का तो घर है लेकिन उसकी मां उसके लिए पराई कब हो गई। किसी दूसरे घर की बेटी को क्या दोष दे जब उसका अपना लड़का ही मां को बोझ समझ ले। किस्मत से हारी, थकी बेहाल उस बुढ़ी औरत को समझ ही नहीं आ रहा था की अब करे तो क्या करे।