‘‘हाँ। सोच रहा हूँ, घर जाने से पहले जरा बाबा विश्वनाथ के दर्शन कर लूँ। आज वहीं जा रहा हूँ।’’
‘‘मैं भी मुगलसराय तक जा रहा हूँ। 11 अप में ड्यूटी लगी है। चलिए, मुगलसराय तक आपका साथ दूँगा।’’ शंकरन ने कहा।
गोस्वामी आगे बढ़े। तभी शंकरन ने पीछे से आवाज लगाई, ‘‘उधर कहाँ जा रहे हैं? गाड़ी तो आ चली।’’
‘‘आ रहा हूँ, पहले टिकट तो ले लूँ।’’
‘‘अरे साहब, आप भी कमाल करते हैं। अब तो रिटायर हो गए हैं, आज तो आदर-सत्कार का मौका दीजिए। मैं चल रहा हूँ, वहाँ तक पहुँचा दूँगा।’’
—इसी संग्रह से
मानवीय संबंधों और समाज के विविध रंगों की आभा-छटा समेटे पठनीय कहानियों का संकलन, जो पाठक के मर्म को स्पर्श करेंगी और स्पंदित भी।