पुस्तक 'मैंडी का ढाबा' की कहानियों के पात्रों को रचने की एक वजह बताते हुए लेखक कहते हैं कि "हम आज एक समाज और राष्ट्र की तरह जिस मुकाम पर हैं, वहाँ हम देखते हैं कि हमारे हजारों साल के विकास और अध्यात्म के बावजूद हमारे ज्ञान और विज्ञान पर अज्ञान अधिक प्रभावशाली है। हम जितना भी आगे आये हों पर हमें पीछे और नीचे ले जाने वाली प्रवृतियाँ आज भी हम पर हावी हैं। हम आज भी धर्म के नाम पर, अगड़े-पिछड़े के नाम पर ओछी राजनीति कर रहे हैं। आज भी हमारे रहनुमा वैमनस्य की, एक-दूसरे को नीचा दिखाने की भाषा बोलते हैं। हमारी बातों में नकारात्मक ऊर्जा ज्यादा है, हम अपनी बात कहने की बजाय ये सिद्ध करने में लगे हैं कि दूसरों की त्रुटियाँ क्या हैं और उनकी तुलना में कितनी बड़ी हैं...।"
मैंडी का ढाबा कहानी पाठकों को अवश्य पसंद आएगी। पुस्तक तैयार है। आज आपके समक्ष पुस्तक का स्लेटी-नीला-बर्फीला आवरण-युक्त पुस्तक आपके सामने प्रस्तुत है।
वैसे तो जब एक पाठक किसी कहानी को पढ़ता है तो वह उसे अपनी तरह परखता है, उसे स्वीकार-अस्वीकार करता है। उसके लिए कहानी एक जरिया बन जाती है, खुद से नये तरीके से जुड़ जाने का। लेखक अजय कुमार जी की ये कहानियाँ, उनका एक स्वपनलोक हैं। इन कहानियों के किरदार जैसे उनके लिए इच्छा पात्र है।
पुस्तक 'मैंडी का ढाबा' की कहानियों के पात्रों को रचने की एक वजह बताते हुए लेखक कहते हैं कि "हम आज एक समाज और राष्ट्र की तरह जिस मुकाम पर हैं, वहाँ हम देखते हैं कि हमारे हजारों साल के विकास और अध्यात्म के बावजूद हमारे ज्ञान और विज्ञान पर अज्ञान अधिक प्रभावशाली है। हम जितना भी आगे आये हों पर हमें पीछे और नीचे ले जाने वाली प्रवृतियाँ आज भी हम पर हावी हैं। हम आज भी धर्म के नाम पर, अगड़े-पिछड़े के नाम पर ओछी राजनीति कर रहे हैं। आज भी हमारे रहनुमा वैमनस्य की, एक-दूसरे को नीचा दिखाने की भाषा बोलते हैं। हमारी बातों में नकारात्मक ऊर्जा ज्यादा है, हम अपनी बात कहने की बजाय ये सिद्ध करने में लगे हैं कि दूसरों की त्रुटियाँ क्या हैं और उनकी तुलना में कितनी बड़ी हैं...।"
मैंडी का ढाबा कहानी पाठकों को अवश्य पसंद आएगी। पुस्तक तैयार है। आज आपके समक्ष पुस्तक का स्लेटी-नीला-बर्फीला आवरण-युक्त पुस्तक आपके सामने प्रस्तुत है।