आखिर में पागल मास्साब की महबूबा पलटकर बापस आ जाती है। यहाँ एक तरफ प्यार हार जाता है और दूसरी तरफ जीत जाता है। बस ऐसा ही कुछ है इस कहानी में........।।
मैं शुक्रगूजार हूँ उन सभी दोस्तों का जिन्होंने कदम-कदम पर मेरी रहनुमाई की और मेरे लिखने की कोशिश में मेरा होंसला बढ़ाया और अपने कीमती मशवरों से नवाजा......मैं अहसान मंद हूँ इन सभी का जिन्होने इस किताब को टाईप करने में मेरी मदद कि- के. पी. सर उर्फ मास्टर किशन पाल, एम. फारूख, भुवेश कुमार यादव और विनोद कुमार का।मगर मेरी जिन्दगी में ये लोग भी अहम हैं जिन्होने हमेशा मेरी काविशों में मेरा साथ दिया-डाॅक्टर एम. ए. राजा, जाहिद टाण्डवी साहब, सिकन्दर मलिक, एडवोकेट आरिफ मलिक, अमित कुमार, एम. एफ. के. राही उर्फ मुहम्मद फैसल खान राही, दानिश दीवाना, नितिन तन्हा, अकरम उस्मानी, इरशाद उस्मानी, फयाज कश्मीरी, मास्टर खुर्शीद, मास्टर राहुल, मास्टर विजेन्द्र, यादगार राही, चाहत मैडम, किरन यादव, डाॅक्टर गजाला, ए. एन. एस. और मिस्टर मायूस मलिक आजाद का, जिनकी बदोलत आज मैं इस काबिल हुआ हूँ कि मेरी दूसरी किताब भी मंजर-ए-आम पर है।
साथ ही मैं हितेश सर और सीना मैडम का भी शुक्रगुजार हूँ, जिनके जरिए मेरी पहली किताब ‘याद आये वो दिन’ प्रकाशित हुई....और अब ये किताब भी हितेश सर और सत्या मैडम (बुक्सक्लिनिक प्रकाशन) के ही करम से प्रकाशित हो रही है।
शुक्रिया आप सभी दोस्तों का.....
-एम. एन. राही अकेला