Pagal Massab: Urf D.M. Sahiba Ki Prem Kahani

· Booksclinic Publishing
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About this ebook

मैं इस किताब के बारे में बस इतना कह सकता हूँ कि ये कहानी वैसे तो मेरी जिन्दगी की एक घटना पर आधारित हैै। मगर इसे मैंने कल्पना के सांचे में ढाला है। ये ऐसे दो दोस्तों की कहानी है जो आई. ए. एस. की तैयारी के लिए इलाहाबाद जाते हैं, और वहाँ उनकी मुलाकात होती है दो लड़कियों से......ये मुलाकात बाद में प्यार में बदल जाती है। मगर अंजाम ये होता है कि दोनों दोस्त फेल हो जाते हैं और वो दोनों आई. ए. एस. बन जाती हैं। होता ये है कि राजू की महबूबा उसे जब ठुकरा देती है तो वो इस हादसे को झेल नहीं पाता और पागल हो जाता है।और होता ये है कि राजू की मौत हो जाती है। दूसरा दोस्त भी पढाई छोड़ कर घर आ जाता है और एक स्कूल में पढ़ाने लगता है। उसके हालात को देखकर बच्चे उसे पागल मास्साब कहकर पूकारते हैं।

आखिर में पागल मास्साब की महबूबा पलटकर बापस आ जाती है। यहाँ एक तरफ प्यार हार जाता है और दूसरी तरफ जीत जाता है। बस ऐसा ही कुछ है इस कहानी में........।।

Ratings and reviews

5.0
2 reviews
mnrahi akela
June 2, 2020
मैने इस किताब को पढ़ा है। ये एक अच्छी कहानी है। इसने मेरे दिल पर एक अमिट छाप छोड़ी है। ये एक ऐसे मास्टर की कहानी है जो अपनी महबूबा डी एम साहिबा के प्यार में पागल हो जाता है।
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Suleman Raza
November 8, 2023
Meri favourite book very nice wraiter
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About the author

मैं शुक्रगूजार हूँ उन सभी दोस्तों का जिन्होंने कदम-कदम पर मेरी रहनुमाई की और मेरे लिखने की कोशिश में मेरा होंसला बढ़ाया और अपने कीमती मशवरों से नवाजा......मैं अहसान मंद हूँ इन सभी का जिन्होने इस किताब को टाईप करने में मेरी मदद कि- के. पी. सर उर्फ मास्टर किशन पाल, एम. फारूख, भुवेश कुमार यादव और विनोद कुमार का।मगर मेरी जिन्दगी में ये लोग भी अहम हैं जिन्होने हमेशा मेरी काविशों में मेरा साथ दिया-डाॅक्टर एम. ए. राजा, जाहिद टाण्डवी साहब, सिकन्दर मलिक, एडवोकेट आरिफ मलिक, अमित कुमार, एम. एफ. के. राही उर्फ मुहम्मद फैसल खान राही, दानिश दीवाना, नितिन तन्हा, अकरम उस्मानी, इरशाद उस्मानी, फयाज कश्मीरी, मास्टर खुर्शीद, मास्टर राहुल, मास्टर विजेन्द्र, यादगार राही, चाहत मैडम, किरन यादव, डाॅक्टर गजाला, ए. एन. एस. और मिस्टर मायूस मलिक आजाद का, जिनकी बदोलत आज मैं इस काबिल हुआ हूँ कि मेरी दूसरी किताब भी मंजर-ए-आम पर है।

साथ ही मैं हितेश सर और सीना मैडम का भी शुक्रगुजार हूँ, जिनके जरिए मेरी पहली किताब ‘याद आये वो दिन’ प्रकाशित हुई....और अब ये किताब भी हितेश सर और सत्या मैडम (बुक्सक्लिनिक प्रकाशन) के ही करम से प्रकाशित हो रही है।

शुक्रिया आप सभी दोस्तों का.....

-एम. एन. राही अकेला


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