लिए साथ जो जाना हमको हम उससे ही मुकर रहे।।
लेखक अमित श्रीवास्तव जब उपरोक्त चंद पंक्तियाँ लेकर सोशल मीडिया पर आए तब लोगों व्दारा की गई सराहना से प्रभावित होकर कवि हृदय अपने लेखों को जो की बहुत ही सरल शब्दों में गुथी गई हैं सोशल मीडिया पर लिखना जारी रखा जो लोगों को सहज ही प्रभावित करने लगीं और लोगों ने असीमित स्नेह और आशीर्वाद दिया जो क्रमशः बढ़ता ही जा रहा है। अमित श्रीवास्तव की कविताएँ गीत और गजल सभी पाठकों को निश्चित ही भाव विभोर करेंगी।
मैं अमित श्रीवास्तव एक लेखक और कवि हूँ, मेरा जन्म 20 जनवरी 1971 को उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले में हुआ। मैंने 1993 में डीएवी कॉलेज गोरखपुर से कला विषय में स्नातक की पढ़ाई पूरी की। हालाँकि मैंने कभी साहित्य को ढंग से नहीं पढ़ा क्योंकि पढ़ाई में मेरी विशेष रूचि नहीं थी फिर भी लिखना मेरा बचपन का प्यार रहा है। मुझे अपनी पहली कविता के बारे में याद है। यह 1990 की बात है, मैं 12वीं कक्षा की परीक्षा देकर अपने घर वापस आ रहा था। मैंने देखा कि कुछ बच्चे सड़क पर धूम्रपान कर रहे हैं, अचानक मेरे मन में जो पंक्तियाँ उभरीं, इस प्रकार हैं।
जब ख्वाब देखने की उम्र हो गई ।
होंठो की ऊंगलियों पे नज़र हो गयी।।
दो ऊंगलियों के बीच वो दब के रह गयी।
जो कश पे कश लिया तो सुलग के रह गयी।।
यही वह दिन था जब मैंने लिखना शुरू किया और फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।