वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुशील राकेश द्वारा रचित यह पुस्तक ‘मानो ना मानो माँ है’ मर्म को छू जाने वाली रचनाओं का खजाना है । कवि ने अनेक रचनाओं में भाव विभोर होकर अपनी आत्माभिव्यक्ति को व्यक्त किया है जो प्रशंसनीय है । वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुशील राकेश ने अपनी छोटी-छोटी रचनाओं में बड़ी-बड़ी बातें कही हैं...कवि ने इस पुस्तक में ‘गागर में सागर भरा है’ । सभी रचनायें उत्तम कोटि की हैं जो पाठकों के हृदय में अपना विशिष्ट स्थान बनाकर रहेंगी, ऐसा मेरा विश्वास है । पुस्तक का भाव पक्ष सशक्त और कला पक्ष लुभावना है जो हिन्दी साहित्य के सुधी पाठकों को अवश्य ही प्रभावित करेगा । संभावना ही नहीं विश्वास है कि हिन्दी काव्य जगत में यह काव्य संग्रह ‘मानो ना मानो माँ है’ अपनी अलग पहचान बनाने में कामयाब होगा । अनेक साहित्यिक संस्थाओं में क्रियाशील विद्वान साहित्यकार श्री सुशील राकेश की यह साहित्य सेवा नवोदित साहित्यकारों को उत्प्रेरित करेगी । इस पुस्तक की रचनाओं को पढ़कर उन्हें बहुत कुछ सीखने को मिलेगा ।