Hamkhurma va Hamsawab (Novel) in Hindi हमखुर्मा व हमसवाब by Munshi Premchand by Munshi Premchand

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हमखुर्मा व हमसवाब मुंशी प्रेमचंद की हास्य-व्यंग्य शैली में लिखी गई एक विलक्षण और मनोरंजक कथा है, जो उनके गंभीर यथार्थवादी लेखन के बीच एक हल्की-फुल्की मगर तीखी व्यंग्यात्मक प्रस्तुति के रूप में पाठकों को एक अलग अनुभव देती है। इस रचना में प्रेमचंद ने विवाह संस्था, पारिवारिक स्वार्थ, रिश्तों की सतही परतों और सामाजिक आडंबरों पर तीखा कटाक्ष किया है। इस उपन्यास का केंद्रीय कथानक दो दोस्तों – सज्जाद हुसैन और रफीक अहमद – के इर्द-गिर्द घूमता है, जो अपने-अपने विवाह प्रस्तावों में उलझे हुए हैं। दोनों एक-दूसरे से अपनी शादी के लिए सहायता मांगते हैं, और उसी क्रम में हास्यजनक स्थितियाँ उत्पन्न होती हैं। कथा में संवादों, स्थितियों और पात्रों के माध्यम से प्रेमचंद ने सामाजिक ढकोसलों और पारिवारिक स्वार्थों को बड़ी चतुरता से उकेरा है। “हमखुर्मा” और “हमसवाब” – दो फारसी शब्द हैं, जिनका अर्थ है – "हम खजूर हैं और हम बराबरी वाले भी", यानी मेल-जोल और बराबरी का रिश्ता। यह शीर्षक ही दर्शाता है कि प्रेमचंद इस कथा में मित्रता, बराबरी और पारस्परिक धोखे की रोचक दुनिया रचते हैं, जो समाज के आम व्यवहारों का दर्पण है। यह रचना हल्के हास्य के भीतर छिपे गहरे सामाजिक संकेतों के कारण विशेष है। प्रेमचंद का व्यंग्य कभी ज़ोर से हँसाता है, तो कभी चुपचाप सोचने पर मजबूर कर देता है।

About the author

मुंशी प्रेमचंद (1880–1936) आधुनिक हिंदी और उर्दू साहित्य के यथार्थवादी स्तंभ थे। उन्हें “उपन्यास सम्राट” की उपाधि प्राप्त है। उन्होंने गोदान, गबन, सेवासदन, निर्मला, कर्मभूमि, रंगभूमि जैसे कालजयी उपन्यासों के माध्यम से भारतीय समाज की गहराइयों को उजागर किया। गंभीर विषयों के साथ-साथ उन्होंने व्यंग्य और हास्य के क्षेत्र में भी योगदान दिया—ईदगाह, पंच परमेश्वर, और हमखुर्मा व हमसवाब जैसी रचनाएँ इसका प्रमाण हैं। उनकी भाषा सहज, जीवंत और भावनाओं से परिपूर्ण होती है।

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