आज की इस तेज रफ़्तार ज़िन्दगी में हम अपनी ही ज़िन्दगी को नहीं संभाल पा रहे है तो दूसरों की ज़िन्दगी को महसूस करने का वक्त कहाँ मिलेगा ? इस भागमभाग में हमने अब महसूस करना छोड़ दिया है , अब हम रील्स स्क्रॉल करने में ही खुश है। धैर्य धीरे -धीरे सबका जवाब दे रहा है और बेचैनियों का आलम गजब है कि सब कुछ होते हुए भी कुछ नहीं है। इंस्टेंट कॉफ़ी की जैसी हमारी ज़िन्दगी बिना पके धुएँ के गुबार की तरह लग रही है। हम समझ रहे है कि हम लोगों से घिरे है लेकिन धीरे -धीरे नितांत अकेले हो रहे है। ज़िन्दगी हमें एक ऐसी आभासी दुनिया की तरफ ले जा रही है - जहाँ सब कुछ धुआँ धुआँ हैं।
पुस्तक में ऐसी कहानियों को संकलित करने का प्रयास किया है जिन्हे हम और आप, जानते है , देखते है और सुनते है। कहानियों को विस्तार रूप से भी लिखा जा सकता था , मगर वर्तमान परिवेश में ज्यादातर लोगो के पास समय का अत्यंत अभाव है और पाठक भी लघु कथायें ही पढ़ना चाहते है। पच्चीस कहानियों में से कोई न कोई कहानी पढ़कर आपको महसूस होगा कि आप या आपके आसपास की ही तो कहानी है और अगर ऐसा होता है तो लगेगा कि लिखना सार्थक हो गया।
आनन्द मेहरा भी बिल्कुल एक आम इंसान की तरह है। नौकरी और परिवार के बीच की जद्दोजेहद उनके साथ भी चलती रहती है। जब भी थोड़ा मौका मिलता है , कलम लेकर लेखन की दुनिया में प्रवेश कर लेते है। लिखना उनका शौक है - भावनायें जब हिलोरे मारती है तो फिर कलम, शब्दों को साथ लेकर पिरोने लगते है - कभी कविताओं के रूप में या फिर कभी कहानी के रूप में।
पहाड़ो से निकलकर शहरो में जीवन व्यापन वक्त की माँग भी है और मजबूरी भी। वो खुद को कवि या लेखक नहीं मानते , उन्हें तो बस लिखना अच्छा लगता हैं। लिखना उनके लिये स्ट्रेस बस्टर का काम करता हैं। रोज़मर्रा की भागमभाग उनके लिए भी सबके जैसी ही है , मगर , वो अपने लिखने के शौक को बरक़रार रखे है। अपने कविताओं के ब्लॉग - "कारवाँ जारी है " में लगभग पाँच सौ कविताएँ लिख चुके है और छः किताबें - " इंद्रधनुष " , " मिगमीर सेरिंग और २१ अन्य कहानियाँ " , " बुराँश के फूल " , " सफ़ेद बुराँश " , " कलम " , " Happiness 1.1 Reloaded " प्रकाशित कर चुके है।
पेशे से प्रबंधन में है और पहाड़ों से निकलकर नोएडा में सपरिवार रहते है।