प्रस्तुत पुस्तक में कुल 58 आलेख हैं। इनमें से कुछ में देश की आन-बान और शान की चर्चा की गई है तो कुछ में राजनेताओं की अपरिपक्वता पर उनके कान भी खींचे गए हैं। स्वरकोकिला भारतरत्न लता मंगेशकर को श्रद्धांजलि अर्पित की गई है तो अपने समय के सफल उद्योगपति रहे राहुल बजाज का यशोगान भी किया गया है। मुसलिम समाज के पिछड़ेपन पर रोशनी डाली गई है तो उन्हें अंधकूप से निकलने के उपाय भी बताए गए हैं।
किसानों, महिलाओं और सियासी दलों पर लेखक की निर्दोष टिप्पणी उनका उपहास उड़ाने के लिए नहीं बल्कि उनका उत्थान करने की नीयत से की गई है, ताकि बेहतर समाज बनाया जा सके। लेखक का साफ मानना है कि यदि सियासत ठीक हो जाए तो समाज भी खुशहाल बन सकेगा। ऐसे में यह उम्मीद बेमानी नहीं है कि 'समाज और सियासत' पाठकों को पसंद आएगी और शोधकर्ताओं को समय का अन्वेषण करने में मददगार साबित होगी।