हिन्दी साहित्य में मेरी रुचि बचपन से ही रही है। छात्र जीवन में भी लिखता रहा हूँ परन्तु सेवानिवृत्ति के पश्चात लेखनी को मैंने फिर उठाया । इसको और आसान बनाया गूगल ने और ब्लाॅगिंग ने । मैंने ब्लाॅग्स पर लिखना प्रारंभ किया था तभी राजू मेरे सामने आ गया । अपने ब्लाग ‘वीनापति’ पर एक धारावाहिक के रूप में इसे लिखता रहा था और संकलित कर उपन्यास के रूप में आपके सामने प्रस्तुत कर रहा हूँ । लेखन में मेरे माता-पिता और मेरी धर्मपत्नी ने सदा मुझे प्रोत्साहन दिया है उनका मैं आभार व्यक्त करता हूँ। इसे लिखने के समय मुझे मेरे बच्चों ने प्रोत्साहित किया । मैं अपनी सुपुत्री सुरभि श्रीवास्तव और मेरे छोटे भाई की पत्नी श्रीमती मंजुला अंजनी श्रीवास्तव को पहले धन्यवाद देना चाहता हूँ जिसने पूरा उपन्यास पढ़ कर अपनी मौखिक अथवा लिखित प्रतिक्रिया व्यक्त की थी और सक्रिय रूप से इसके कथा लेखन में मेरे साथ जुड़ी रहीं । मंजुला जी ने प्रूफ रीडिंग में भी मेरा पूरा सहयोग किया । उन्हें एक बार फिर से साधुवाद। मेरी बड़ी बेटी श्रीमती तूलिका श्रीवास्तव समय-समय पर पेरिस से ही अंतर्जाल पर धारावाहिक के अंश पढ़ती रही और उत्साहित करती रही । मेरी बेटी श्रीमती स्तुति श्रीवास्तव ने (जिसके पास मैं रहता हूँ) और मेरे दामाद श्री संजीव श्रीवास्तव जी ने घर में लेखन हेतु अच्छा परिवेश देकर मेरी सहायता की, जिसका मैं आभारी हूँ । -Sharad kumar shrivastava