Man Nhi Karta

· INK FREEDOM PUBLISHERS
4.8
31 reviews
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About this ebook

ककसी हादसे की पररकल्पना से पररतयाग तक की यात्रा ह प्रेम का भाव प्रदमशसत करती है। ‘मन नह ीं करता’ ककनह षवचारों का मेि नह ीं बब्ल्क एक तरफ से खतम आशा ह है। जो कक उस हादसे के बाद हर ककसी को जानने के मिए आतुर करती हैं। ककसी प्रेम का साराींश कभी अतयधिक नह ीं हो सकता वो तणृ मात्र की कल्पना ह मैंको तुम मे बना देती है। पुस्तक में प्रस्तुत पींब्ततया मात्र प्रेम नह ीं अषपतु ककसी अपने के तयाग का वणसन भी करती हैं। ये पींब्ततयााँ इतनी सरि तो ना होंगी ब्जतनी हदखती है तकर बन ये सोिह से सत्रह मह ने उम्र की तरह प्रतीत हो रहे हैं ब्जसमें महज 200 के कर ब रुबाईयाीं है। ककताब प्रेम मे आए उन सभी ख्वाबों का रूप हैं ब्जसे समाज स्वीकार नह ीं करना चाहता। तयोंकक ररश्ते सायद बनने कम बबकने ज्यादा िगे।। ‘वो हर बात सजोंई हैं, मैंने इस तरह इसमें। जैसे चााँद में से दाग को धगनना मेरे’ ममश्रा।’ 

Ratings and reviews

4.8
31 reviews
Deepak kumar
September 21, 2023
Very good Books . it's concept and story
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Om dutt Maurya
July 11, 2023
That's a very nice book
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Anurag Kumar
July 9, 2023
you are awesome bro 👏🏻👍🏻
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About the author

‘ जुस्तजूपे, हजारों शेर में पूछा गया महज,’ खोया बेजार शतस कौन, ब्जसपे कहते! ममश्रा हों? नयातयक राजिानी प्रयागराज के छोटे से कस्बे से तनकिे ‘ऋषभ ममश्र’ उत्तर प्रदेश की षवशाि सींख्या में एक युवा िेखक के रूप में मातृ भाषा हहदीं में ह अपनी रचनाओीं का िेखन करते हैं। जो कक याींबत्रक अमभयींता के छात्र के रूप में द्षवतीय वषस में अध्ययनरत है। षवगत इस सत्रह वषो में इनहोंने इस उम्र का एक हहस्सा काव्य वा िेखन को सौप हदया है। षपछ्िे कुछ वषो से िगातार पबत्रकाओीं व अनय प्रततयोधगताओीं में अनेकों बार भाग मिया और अपने िेखन के प्रतत प्रेम बढाए रखा। 

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