‘ जुस्तजूपे, हजारों शेर में पूछा गया महज,’ खोया बेजार शतस कौन, ब्जसपे कहते! ममश्रा हों? नयातयक राजिानी प्रयागराज के छोटे से कस्बे से तनकिे ‘ऋषभ ममश्र’ उत्तर प्रदेश की षवशाि सींख्या में एक युवा िेखक के रूप में मातृ भाषा हहदीं में ह अपनी रचनाओीं का िेखन करते हैं। जो कक याींबत्रक अमभयींता के छात्र के रूप में द्षवतीय वषस में अध्ययनरत है। षवगत इस सत्रह वषो में इनहोंने इस उम्र का एक हहस्सा काव्य वा िेखन को सौप हदया है। षपछ्िे कुछ वषो से िगातार पबत्रकाओीं व अनय प्रततयोधगताओीं में अनेकों बार भाग मिया और अपने िेखन के प्रतत प्रेम बढाए रखा।