पेशे से यांत्रिक अभियंता संजय ने भारतीय रेलवे में ३७ वर्षों तक विभिन्न पदों पर अपना योगदान दिया और प्रधान कार्यकारी निदेशक के पद से सेवानिवृत हुए. ज़िन्दगी को कुछ पास से अनुभव करने की ललक ने ऐसे तज़र्बे हासिल कराए जो शेरो में ढल गए . कारखानों के कोलाहल और प्रशासनिक उठापटक के बीच मानवीय मूल्यों और संवेदनाओं को सहेजने का शौक ही संबल बना . इन्हीं अभिव्यक्तिओं को गज़ल के माध्यम से कहने का यह पहला प्रयास है.