यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत । अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥ अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥ परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् । धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ॥ जब जब धर्म की हानि होती है, जब जब धर्म की हानि होती है, जब जब अधर्म बढ़ता है,
तब तब मैं साकार रूप में अवतार लेता हूं,
अधर्म का नाश करता हूं ,
पापियों का विनाश करता हूं,
साधु जनों की रक्षा करता हूं,
हर युग में सनातन धर्म की पुनः संस्थापना करता हूं।