मनुष्य के चरित्र की विशेषता और गौरव उसकी अपूर्णता में ही है। पूर्ण केवल ईश्वर होता है। भगवान् जब मनुष्य के रूप में धरती पर अवतार लेते हैं तो उन्हें हर प्रकार से मनुष्य के अनुरूप ही दिखना चाहिए। इस विशेषता की पूर्णरूप से रक्षा यदि भगवान् के किसी अवतार में हुई है, तो वह रामावतार में।