और भोगियों की निशानी है कि वे परनारी और परधन को भी अपनी अमानत समझते हैं तथा अनुचित लीपा पोती से समय नष्ट करना भी धर्म समझते हैं; परंतु पराया धन और पराई नार तलवार की ऐसी भयंकर धार है कि उससे कटकर जीव सीधा नरक ही जाता है । मरना सबको है और जब तक जीता है तब तक हर मनुष्य नित्य 8-10 रोटी से अधिक नही खाता और पाप 10000 रोटी के लायक करता है जो धन वह पाप से कमाता है उसका एक प्रतिशत भी कोई भी मनुष्य उपभोग नहीं करता वह सारा धन ब्याज सहित रोग , दुर्घटना से अस्पताल में , लड़ाई से कोर्ट कचहरी में या उन वस्तुओं में नष्ट होता है जो यहीं छोड़कर जाना है और मरने पर वह जीव यहीँ नाग बनकर उस धन के ही आसपास मंडराता रहता है और कुछ अतिपाप से प्रेत बनकर उसी दौलत और बंगले के आसपास ही भटकते हैं। पाप का अतिरिक्त दण्ड तो अलग है ही। अतः हे मनुष्यों ! आप सब 80 वर्ष के अंदर निश्चित ही चिता पर सोने वाले हो यह अमोघ भविष्य वाणी ही मानो तो फिर काहे पाप ( चोरी , बलात्कार, लूट , कुदृष्टि और,बेईमानी आदि ) करके ईश्वर की सुंदर सृष्टि में खलल मचा रहे हो। इससे आपको भयंकर दुख भोगना पड़ेगा। अतः अक्षयरुद्र की बात मानकर धर्मात्मा बनो। सांझ आपकी भी ढलेगी और इस अक्षयरुद्र के देह की भी .....बचना किसी को भी नहीं। पर आप धर्म पालन से परिवार, समाज और राष्ट्र को तो सुख दे ही सकते हो तथा इससे आपको भी दिव्य लोक प्राप्त होगा। और आत्मिक शान्ति।