""जो भी मेरी शरणमें आता है, उसका दुःख अवश्य ही
नष्ट हो जाता है; क्योंकि शरणागत भक्त मुझे प्राणोंसे भी अधिक प्रिय हैं, इसमें संशय नहीं है ।
गतो मच्छरणं यस्तु तस्य दुःखं क्षयं गतम् ।
मत्प्रियः शरणापन्नः प्राणेभ्योऽपि न संशयः ॥""
और प्रभु की शरण में जाने का तात्पर्य उनको आत्म समर्पण करना है ,पर जो आत्म समर्पण नहीं कर सकते वे यदि मात्र स्तोत्र का पाठ करें तो भी शिव (अर्थात् आपके इष्ट रूप चाहे जो भी हो ) की शरणागति का ही फल मिलता है और वे आशुतोष भगवान अवश्य ही आपकी दसों दिशाओं से रक्षा करते हैं अतः इन स्तोत्रों को शरणागतवत्सल भी कहें तो भी अतिशयोक्ति नहीं होगी।
जिस प्रकार मंत्र और मंत्र के देवता में अंतर नहीं होता उसी प्रकार स्तोत्र और
जिनकी स्तुति है उन परमात्मा में अंतर नहीं होता।
यह स्तोत्र संस्कृत भाषा में पढ़े जाए या मातृभाषा अथवा किसी भी भाषा या बोली में अवश्य ही तत्काल रक्षा करते हैं अतः हे भक्तों ! आप जीवन के सभी प्रकार के तापों से मुक्त होने के लिए अपने इष्ट देव का कोई भी एक स्तोत्र दोनों समय अवश्य ही पाठ करें और यदि आप ब्रह्मचर्य पूर्वक 1000 पाठ करते हैं तो आप निश्चित ही परम से भी परम सौभाग्यशाली हो जाओगे। यह स्तोत्र निधिवन महाग्रंथ का द्वितीय भाग है जो आपके जीवन को प्रफुल्लित करके परम आनंद देने का सामर्थ्य रखता है ।
अतः शाक्त उपासक इस निधिवन से देवी का स्तोत्र चुनें और शैव आराधक शिव भोलेनाथ की स्तुति से भगवान शिव शंकर के शरण में जाये और वैष्णव जनों व गणपति जी के भक्तों के लिए भी इस ग्रंथ में अद्वितीय स्तोत्र हैं अथवा अपने इष्ट की खुशी के लिए भी आप मनचाहे स्तोत्र का आश्रय लेकर इष्ट की कृपा पा सकते हैं।
आपके सुखद भविष्य की कामना के साथ आपका शुभ चिंतक
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शंकराचार्यांश ब्रह्मानंद अक्षयरुद्र अंशभूतशिव"