बाबू वेणी घोषाल ने मुकर्जी बाबू के घर में पैर रखा ही था कि उन्हें एक स्त्री दिख पड़ी—पूजा में निमग्न। उसकी आयु थी, यही आधी के करीब। वेणी बाबू ने उन्हें देखते ही आश्चर्य से कहा, ‘मौसी, आप हैं! और रमा किधर है?’ मौसी ने पूजा में बैठे-ही-बैठे रसोईघर की ओर संकेत कर दिया। वेणी बाबू ने रसोईघर के पास आकर रमा से प्रश्न किया, ‘तुमने निश्चय किया या नहीं, यदि नहीं तो कब करोगी?’रमा रसोई में व्यस्त थी। कड़ाही को चूल्हे पर से उतारकर नीचे रखकर, वेणी के प्रश्न के उत्तर में उसने प्रश्न किया, ‘बड़े भैया, किस संबंध में?’‘तारिणी चाचा के श्राद्ध के बारे में। रमेश तो कल आ भी गया और ऐसा जान पड़ता है कि श्राद्ध भी खूब धूमधाम से करेगा! तुम उसमें भाग लोगी या नहीं?’ वेणी बाबू ने पूछा।