एक बुढ़िया झोंपड़ी में बैठी आटा गूंध रही थी। झोंपड़ी के सामने एक पेड़ था। पेड़ पर से एक बंदर आया और बुढ़िया का आटा उठाकर पेड़ पर चढ़ गया। बुढ़िया रोकर बोली, “बंदर, मेरा आटा दे।''
बंदर ने चने की एक दाल बुढ़िया को दिखाकर कहा, “यह दाल पहले खा ले, फिर आटा हूँगा।'' बुढ़िया ने उससे चने की दाल लेकर खा ली। तब बंदर ने उसका आटा वापस देकर कहा, “अब तू मुझे अपनी पीठ पर बैठाकर सैर कराने ले चल।'' बुढ़िया ने कहा, “मैं रोटी पकाकर खाऊँगी। मुझे फुरसत नहीं है।'' तब बंदर बोला, । ‘ला मेरी चने की दाल।'' —पुस्तक से