अभियान में दो किरदार एक दूसरे से दूर भटकते हैं, जिन्होंने कभी एक दूसरे को देखा तक नहीं होता सिवाय बचपन से आई अंजान अनुभूतियों के..। जिनकी प्रार्थनाओं ने उनको यह एहसास करा दिया कि वे दोनों हैं तो पर आँखों से ओझल यहीं कहीं, जो एक दूसरे की खोज में खोजते हुए वास्तविकता से गुजरेंगे।
सफ़र करता हुआ परिंदा अपने आप को अकेला पाता है, शुरू से सब के साथ होकर भी, जिसकी प्यास उसे नए रास्तों पर ले जाती है किसी की तलाश में जो खुद उसे ढूँढ़ रही है।
दोनों के इश्क को देखकर लगता है मानो वे कई जन्मो से ही नहीं कई दुनिया में से गुजरते हुए आज यहाँ हमारी दुनिया में घूम रहे हैं..।
..उन दोनों के प्रेम की गहराई ने अस्तित्व को तक छू लिया जो एक दूसरे को अदृश्य संदेश पहुँचाने लगी प्रकृति भी, वह कब मिले और अलग हो गए किस धारा में..। बचपन से ही दोनों को सब ओर दिखाई देने लगी वह प्यारी प्यास जो उनको एक अनोखी यात्रा के सफ़र की तैयारी कराने लगी।
दो नाव की उत्पत्ति एक साथ हुई, वे नौका साथ चली थीं जो एक समुद्र में बिछड़ गई और तलाश रही हैं खोजकर, कितने बचपन निकल गए मगर आज तक मिलन खेलने तड़प ही रहा है।
लिखने वाले के बारे में क्या कहूँ क्योंकि अभी यह बालक छोटा ही तो है फिर भी बुजुर्गों की लाठी लेकर चलता है। जिसकी कल्पना शक्ति, गूढ़ अंतरतम से आते अनुभव और प्रेममय बुध्दि इसे दूर-दूर के खेलते फूलों का सौन्दर्य दिखा देती है।
यह नृत्यकार लिखकर नाचता है बियाबान में भी और कभी मायूस होकर किसी डाली पर बैठकर पक्षियों के साथ ढलते सूर्य की ओर जाती तितलियों को देखता है।
..यह वो उड़ता हुआ यात्री है जो सागर में तैरते हुए नाचता गाता जाता है मछलियों के संग, और जब किसी टापू पर ठहरता है तो उसी जमीन पर पड़े रंगीन पत्थरों से कुछ लिख जाता है जो पहले से नया, अजीब, सुन्दर और असाधारण होता है।
और इसके आगे-पीछे ऐसा कुछ नहीं दिखाई देता जो इसे कोई पद या अवस्था दे, यह तो एक खिलता हुआ मुसाफिर जान पड़ता है, देखो उसके शांत चंचल चेहरे पर उसकी नम सरल आँखें किसी को तलाशती हुई देख मुस्कराकर विदा हो रही हैं।