भूमिका अंतर्चेतना में जाने कब से पलते हुए मेरे स्वप्न का एक हिस्सा इस पुस्तक के रूप में साकार हुआ है। एक सामाजिक प्राणी ,मनुष्य का समग्र जीवन अनगिनत घटनाओं का समूह होता है खट्टे -मीठे ,कड़वे -तीते अनुभवों का एक सागर एक आकाश। कथा -कहानी -गल्प यद्यपि कल्पना -आधारित साहित्य है। पर किसी भी कथा की पृष्ठभूमि जीवन की यही घटनाएं होती हैं। घटनाएं अथवा हादसे जो किसी भी संवेदनशील हृदय को छू सकें ,उसे उद्वेलित कर सकें। इन कहानियों का ताना -बाना भी ऐसी ही घटनाओं से प्रेरित है। इन कहानियों के अंकुरण ,लेखन एवं इस पुस्तक तक ले जाने में मेरे कई सहायक रहे हैं। फिर आज के आधुनिक यंत्र ___ कम्प्यूटर तक का इनका सफर मेरे किये तो सम्भव ही नही था। इस सब के लिए मैं आभारी हूँ पारुल ,बृजवीर ,प्रियंका ,अनुज ,संजीवजी जो प्रारम्भ से ही मेरी कहानियों के प्रेरक भी रहे और मुझे कम्प्यूटर सिखाने में मेरे मददगार भी। मैं शुक्रगुज़ार हूँ श्रीमती डॉक्टर विजया लक्ष्मी सिन्हा जी की उनके उत्साह -वर्धन एवं निर्देशन की। आभारी हूँ मेरे पति श्री पी डी गुप्ता जी की जिनके पूर्ण सहयोग के बिना मेरे लिए न कुछ लिख पाना सम्भव था न छपवाना। और आभारी हूँ आपकी यानि प्रिय पाठकों की जिनके ,सुझाव एवं सहयोग की प्रतीक्षा मुझे बेताबी से है।