"चंदा मामा दूर हैं " छिबरामऊ जनपद-कन्नौज (उ.प्र.) निवासी विख्यात साहित्यकार धक्कड़ फर्रुखाबादी द्वारा रचित तृतीय काव्य कृति है ...इससे पूर्व उनकी दो पुस्तकें उत्कर्ष प्रकाशन द्वारा प्रकाशित हो चुकी हैं ... इस बाल कविताओं के संग्रह में उन्होंने कुछ अपने मन की बात कही है देखिये.......बच्चे देश की अमूल्य धरोहर हैं। देश के भविष्य का निर्माण उन पर निर्भर करता है। बच्चों को संस्कारवान बनाने का दायित्व परिवार, समाज व शिक्षण संस्थाओं का है। बच्चों के कोमल मस्तिष्क पर अच्छे या बुरे जो भी संस्कार पड़ते हैं। वे स्थायी हो जाते हैं। संयुक्त परिवार टूटने के कारण बच्चों को दादी, नानी की कहानियाँ अब सुनने को नहीं मिल पाती हैं। उनके मनोरंजन का एक मात्र साधन टेलीविजन व मोबाइल रह गये हैं। ये साधन जहाँ उन्हें अच्छी जानकारी देते हैं वहीं कभी-कभी कुसंस्कारों को भी जन्म देते हैं। ऐसे में बाल साहित्यकारों का उत्तरदायित्व है कि वे ऐसे बाल साहित्य का सृजन करें। जिससे बच्चे अच्छे संस्कार ग्रहण कर सकें। आज बच्चे बाल साहित्य से दूर होते जा रहे हैं। अतः आवश्यक है कि बच्चों को बाल साहित्य पढ़ने के लिए प्रेरित किया जाए। बाल साहित्य सस्ता होना चाहिए। जिससे बच्चे उसे अपने जेब खर्च के पैसों से खरीद सकें। अभिभावकों एवं शिक्षण संस्थाओं का भी दायित्व है कि बच्चों को बाल साहित्य उपलब्ध करायें। जिसे पढ़कर उनके अन्दर बाल साहित्य के प्रति लगाव एवं रुचि पैदा हो सके। "चन्दा मामा दूर हैं" मेरी बाल कविताओं की दूसरी पुस्तक है, जो आपके हाथों में है। मैं अपने प्रशंसकों एवं विद्वान पाठकों का बहुत ही आभारी हूँ। जिनसे मेरी लेखनी को सदैव बल मिलता रहा है। बच्चों को मेरी ये कविताएँ पसन्द आयी तो मैं अपने प्रयास को सार्थक समझूँगा।