‘भारत की राजनीति का उत्तरायण’; जैसा कि पुस्तक के शीर्षक से ही स्पष्ट है; एक राजनीतिक पुस्तक है। कोई भी राजनीतिक पुस्तक राजनीतिक घटनाओं पर आधारित हो सकती है अथवा राजनीति से जुड़े व्यक्तित्वों पर आधारित हो सकती है या फिर राजनीतिक विचारधारा से; राजनीतिक विचारों से जुड़ी हो सकती है। यह पुस्तक तीसरे वर्ग में रखी जा सकती है; अर्थात् ‘उत्तरायण’ पुस्तक विचारधारा पर आधारित राजनीतिक पुस्तक है।
भारत की विचारधारा से जुड़ी कोई राजनीतिक पुस्तक हो और वह भारत के अध्यात्म; भारत के धर्म और भारत के संप्रदायों से न जुड़ी हो; भारत की अपनी निगम-आगम-कथा परंपराओं से न जुड़ी हो; भारत के अध्यात्म-अद्वैत-भक्ति; अपने इन तीन वैचारिक आंदोलनों से न जुड़ी हो; भारत के तीन विशिष्टतम महर्षियों; जो संयोगवश तीनों ही दलित महर्षि हैं; ऐसे वाल्मीकि; वेदव्यास तथा सूतजी महाराज से न जुड़ी हो; तो फिर वह भारत की विचारधारा पर आधारित पुस्तक कैसे कही जा सकती है? ‘उत्तरायण’ भारत की इसी; दस हजार सालों से विकसित अपनी; देश की अपनी विचारधारा से जुड़ी पुस्तक है; देश के अध्यात्म-धर्म-संप्रदाय से अनुप्राणित पुस्तक है। निगम; आगम; कथा इन तीनों परंपराओं से जीवन-रस प्राप्त करने वाली तथा भारत केतीन वैचारिक आंदोलनों; अध्यात्म-अद्वैत-भक्ति आंदोलनों से पोषण प्राप्त करने वाली शब्द-प्रस्तुति है; उसी से प्राप्त विचारधारा का विश्लेषण करती है।
भारत की विचारधारा पर आधारित इस पुस्तक के केंद्र में ‘हिंदुत्व’ है; जो पिछले दस हजार साल से भारत की अपनी विचारधारा है और इस विचारधारा के केंद्र में है ‘हिंदू’; जिसको लेखक ने इन शब्दों में परिभाषित किया है कि ‘हिंदू वह है; जो पुनर्जन्म मानता है’।
भारत में सभ्यताओं के बीच हुए संघर्ष को ढंग से समझने की कोशिश करनी है तो वह काम गंगा-जमनी सभ्यता जैसे ढकोसलों से परिपूर्ण शब्दावली से नहीं हो सकता। भारत को बार-बार तोड़नेवाली विधर्मी शक्तियों के विवरणों पर खडि़या पोत देने से भी काम नहीं चलनेवाला। ‘इसलाम शांति का मजहब है’ जैसी निरर्थक बतकहियों से भी कोई बात नहीं बननेवाली। भारत के सभी मुसलिम निस्संदेह भारत की ही संतानें हैं। हम इतिहास में दुर्घटित सभी इसलाम प्रवर्तित भारत-विभाजनों से मुक्त अखंड भारतवर्ष की बात कर रहे हैं। पारसीक (फारस); शकस्थान (सीस्तान); गांधार (अफगानिस्तान); सौवीर (बलोचिस्तान); सप्तसिंधु (पाकिस्तान); सिंधुदेश (सिंध); कुरुजांगल (वजीरिस्तान); उत्तरकुरु (गिलगित-बल्टिस्तान); काश्मीर (पी.ओ.के.); पूर्व बंग (बांग्लादेश) आदि सभी इसलाम प्रेरित विभाजनों से पूर्व के भारतवर्ष की बात कर रहे हैं। इतिहास के धरातल पर लिखे अमिट सत्य को स्वीकारने में; अपने पिता; दादा; परदादाओं के धर्म; शिक्षा-दीक्षा; संस्कारों व परंपराओं में फिर से मिलकर घुल-मिल जाने में ही समस्याओं के समाधान प्राप्त हो सकते हैं। शुरू की दो-एक पीढि़यों को कुछ मानसिक; वैचारिक; सामाजिक सवालों व तनावों का सामना करना पड़ सकता है। पर वहीं से समाधानों का अक्षय स्रोत भी फूटेगा। जाहिर है कि भारत का अपना जीवन-दर्शन; भारत का अपना धर्म; भारत के अपने संप्रदाय; भारत के अपने पर्व-त्योहार; भारत की अपनी सभ्यता; भारत की अपनी भाषाएँ; भारत की अपनी विचारधारा ही भारत की राजनीति के उत्तरायण की पटकथा लिखनेवाले हैं। लिखना शुरू भी कर चुके हैं। Bharat ki Rajneeti ka Uttarayan is a book authored by Suryakant Bali. This book delves into the political landscape of India, providing insights into the evolution and development of Indian politics.
Key Aspects of the Book "Bharat ki Rajneeti ka Uttarayan":
1. Indian Politics: The book offers a comprehensive exploration of the political history and dynamics of India.
2. Historical Perspective: It provides readers with a historical perspective on the transformation and progress of Indian politics.
3. In-Depth Analysis: The content includes in-depth analysis and commentary on key political events and developments.
This book is authored by Suryakant Bali, an author with expertise in the field of Indian politics, offering valuable insights into the subject.