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भारत का संविधान समाज की विविधता, एक नव स्वतन्त्र राष्ट्र की आकांक्षाओं तथा वास्तविक लोकतन्त्र के प्रति लोगों के संकल्प को प्रतिबिम्बित करता है। सरल भाषा में लिखी गयी यह संक्षिप्त रचना हम भारत के लोग हमारे संविधान के सार को दर्शाती है और सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि इसके निर्माता किस तरह क़ानून के शासन पर आधारित लोकतन्त्र की स्थापना करना चाहते थे, जहाँ सार्वजनिक मामलों का संचालन पूर्व-स्थापित सिद्धान्तों पर आधारित होना चाहिए। अब तक हमारे संविधान की कहानी, स्वतन्त्रता, समानता और बन्धुत्व को प्राथमिकता देते हुए बहुलतावादी समाज को समायोजित करने के लिए किये गये समझौतों के बारे में हिन्दी में बहुत कम किताबें लिखी गयी हैं। उस महान दस्तावेज़ के अर्थ को स्पष्ट रूप से सामने लाने और हमारे संस्थापक सिद्धान्तों को समझाने के लिए लेखक सुरभि करवा और तरुणाभ खेतान को बधाई।
—जस्टिस एस. रवीन्द्र भट
(पूर्व न्यायाधीश, सर्वोच्च न्यायालय, भारत)
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भारत का संविधान देश का उच्चतम क़ानून है जिसद् महत्ता इस बात में है कि वह शासन-प्रणाली का मूल सूत्र है जिसे 'हम भारत के लोगों' ने स्वयं को अर्पित किया है। इसका ज्ञान हर नागरिक को होना चाहिए। इसके लिए यह आवश्यक है कि संविधान सब भारतीय भाषाओं में उपलब्ध हो। मैं तरुणाभ व सुरभि को बधाई और धन्यवाद देता हूँ कि इन्होंने इस महाग्रन्थ को हिन्दी भाषा में देश की जनता को उपलब्ध कराया है। लेखकों ने बड़े अनूठे ढंग से कठिन व ज्वलन्त संवैधानिक विषयों को सरल बनाकर निराली प्रणाली में प्रस्तुत किया है। निश्चित ही, यह पुस्तक हिन्दीभाषी देशवासियों के लिए एक अद्भुत उपलब्धि साबित होगी।
—जस्टिस अर्जन कुमार सीकरी
(पूर्व न्यायाधीश, सर्वोच्च न्यायालय, भारत)
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डॉ. अम्बेडकर ने आगाह किया था कि पूरे समाज में संवैधानिक नैतिकता विकसित करना हमारे लोकतान्त्रिक संविधान की सफलता के लिए ज़रूरी है। लेकिन भारत की कई भाषाओं में इस विषय पर आसान और सुलभ किताबों की कमी की वजह से बहुत सारे लोग हमारे संविधान को गहराई से समझ नहीं पाये हैं, इसके बावजूद यह उनके जीवन को विभिन्न तरीक़ों से प्रभावित करता है। यह सन्दर्भ इस पुस्तक को हिन्दी में भारतीय संविधान पर उपलब्ध गिनी-चुनी किताबों में एक महत्त्वपूर्ण और स्वागत-योग्य योगदान बनाता है। अपने विषय को बारीकी से समझाते हुए भी यह किताब पठनीय है। इसमें संविधान के विचारों, मूल्यों और उसमें स्थापित संस्थाओं और उनके उत्तरदायित्वों की स्पष्ट तरीके से व्याख्या की गयी है। विद्वत्तापूर्ण तरीके से रची यह पुस्तक भारतीय संविधान की अविवेचनात्मक प्रशंसा नहीं करती, बल्कि इसमें शामिल अच्छाइयों के साथ-साथ इसकी ग़लतियों और चुनौतियों पर भी विचार करती है। यह पुस्तक किसी भी भारतीय के लिए चाहे वह आम नागरिक हो या वकील- हमारे संविधान के कामकाज को समझने के लिए अनिवार्य रूप से पढ़ने योग्य है।
—प्रो. अपर्णा चन्द्रा
(नेशनल लॉ स्कूल ऑफ़ इंडिया यूनिवर्सिटी, बेंगलुरु)
तरुणाभ खेतान संविधान के जाने-माने ज्ञाता और लन्दन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स एंड पॉलिटिकल साइंस में संविधान के प्रोफ़ेसर और चेयर हैं। इससे पूर्व ये ऑक्सफ़ोर्ड विश्वविद्यालय में प्रोफ़ेसर रह
चुके हैं। इनका लेखन सुप्रीम कोर्ट ऑफ़ इंडिया, यूरोपियन कोर्ट ऑफ़ ह्यूमन राइट्स, सुप्रीम कोर्ट ऑफ़ कनाडा आदि न्यायालयों द्वारा अपने फ़ैसलों में शामिल किया गया है।
सुरभि करवा ने ऑक्सफ़ोर्ड विश्वविद्यालय से क़ानून की पढ़ाई की है। वर्तमान में ये सिडनी, ऑस्ट्रेलिया में पीएच.डी. कर रही हैं। ये कई जानी-मानी अकादमिक पत्र-पत्रिकाओं और मीडिया में लिखती रही हैं और नारीवादी संस्थाओं से जुड़ी हुई हैं।
इन्हें लेटेन फ़ेलोशिप (लन्दन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स) और बोनावेरो इंस्टिट्यूट ह्यूमन राइट्स फ़ेलोशिप (यूनिवर्सिटी ऑफ़ ऑक्सफ़ोर्ड) से भी नवाज़ा गया है।