विष्णु प्रभाकर की यह कालजयी रचना एक ऐसे चरित्र के माध्यम से समाज के नैतिक, सांस्कृतिक और पारिवारिक मूल्यों को प्रश्नांकित करती है, जो अपने अनुभवों और सिद्धांतों के आधार पर जीवन की जटिलताओं को समझने का प्रयास करता है।
मुर्ब्बी केवल एक कहानी नहीं, बल्कि उन आदर्शों और अंतर्द्वंद्वों का जीवंत चित्रण है जो समय और परिस्थिति के साथ टकराते हैं। यह एक ऐसा पात्र है जो परंपरा और परिवर्तन के बीच पुल बनाता है, और अपने संघर्षों से पाठक को एक नए दृष्टिकोण से अवगत कराता है।
लेखक की सहज भाषा, मनोवैज्ञानिक गहराई और सामाजिक दृष्टिकोण इस पुस्तक को एक अनमोल साहित्यिक धरोहर बनाते हैं।
मुर्ब्बी उन पाठकों के लिए है जो केवल कहानियाँ नहीं, जीवन के अर्थ को पढ़ना चाहते हैं—और जो मानते हैं कि साहित्य का उद्देश्य केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि आत्ममंथन और सामाजिक बोध भी है।
यह कृति निस्संदेह हिंदी साहित्य के गंभीर पाठकों के लिए एक आवश्यक संग्रह है—जो मनुष्य और समाज के बीच की गहरी गाँठों को खोलती है।