विष्णु प्रभाकर की लेखनी यहाँ भी अपने शिखर पर है, जहाँ वे जीवन की जटिलताओं को सरल शब्दों में गहरी संवेदना के साथ प्रस्तुत करते हैं। यह रचना केवल कथा नहीं, बल्कि एक दर्पण है—जो हमें चेतावनी देता है कि भावनाओं, मूल्यों और रिश्तों के पुल टूटने से पहले हमें सजग हो जाना चाहिए।
पुल टूटने से पहले सामाजिक विघटन, आत्मिक अकेलेपन और मानसिक द्वंद्व जैसे विषयों को छूते हुए पाठकों को आत्मचिंतन के लिए प्रेरित करती है। इसमें पात्र केवल कहानियों के वाहक नहीं, बल्कि विचारों और समय के प्रतिनिधि हैं—जो हर पाठक के भीतर कुछ गूंजते हुए छोड़ जाते हैं।
यह रचना उन लोगों के लिए है जो जीवन को केवल जीते नहीं, उसे समझना चाहते हैं—जो बदलाव से पहले उसके संकेतों को पहचानने का माद्दा रखते हैं।
पुल टूटने से पहले न केवल एक साहित्यिक यात्रा है, बल्कि एक चेतावनी भी—कि जब संबंधों, विचारों और भावनाओं के पुल डगमगाने लगें, तो मौन रहने के बजाय संवाद आवश्यक है।
यह पुस्तक हिंदी साहित्य के गंभीर पाठकों के लिए एक अमूल्य योगदान है, जो भावनाओं के पुल को टूटने से पहले जोड़ने की प्रेरणा देती है।