यज्ञ शर्मा द्वारा रचित यह व्यंग्य संग्रह न केवल राजनीतिक परिप्रेक्ष्य की परतें उघाड़ता है, बल्कि सामाजिक ताने-बाने की उन गिरहों को भी खोलता है, जिन्हें अक्सर अनदेखा कर दिया जाता है।
पुस्तक की हर एक रचना अपने आप में एक तल्ख़ हँसी है—ऐसी हँसी जो भीतर तक चुभती है, लेकिन साथ ही सिस्टम की खोखली बुनियादों पर सवाल भी उठाती है।
सरकार का घड़ा में लेखक ने आम आदमी के संघर्ष, उम्मीदें और मायूसी को इतने चुटीले अंदाज़ में उकेरा है कि पाठक अनायास ही खुद को उन पात्रों और परिस्थितियों में पाता है।
यह संग्रह उन सभी के लिए है जो राजनीति के नकली मुखौटों को पहचानना चाहते हैं, जो लोकतंत्र के सच और मज़ाक के बीच का अंतर समझते हैं, और जो व्यंग्य को मात्र हँसी नहीं, बल्कि जागरूकता का औज़ार मानते हैं।
सरकार का घड़ा पढ़ते समय आप हँसेंगे भी, चौंकेंगे भी—और शायद सवालों से टकराकर कुछ नया सोचने लगेंगे।