Thank you
मुझे इस दौलत -ओ -शोहरत से कुछ नही लेना ...
मुझे इस रईस शान ओ शौकत से कुछ नही लेना ...
है खाक का ही आशियाना बहुत हमारे लिए ....
मुझे इन ऊंचे महल -ओ -मकान से कुछ नही लेना ..
मैं ज़ीनत फ़ातिमा उत्तर प्रदेश के छोटे से शहर हरदोई से हूँ, मैं ने अपनी ज़िन्दगी के छोटे से सफ़र में ही वो दुनिया देखी है, वो दर्द देखा है और वो ज़िन्दगी गुज़र की है जिसका तसव्वुर मैंने बचपन में कभी नही किया था। बचपन में मस्त मौला ज़िन्दगी जीने वाले बच्चे को ये ख़बर कहाँ होती है कि वो जवानी में किस ज़िम्मेदारी , दर्द, मुसीबत के भंवर में फंस जाने को है। इसी तरह के हालात कुछ मेरी ज़िंदगी में आये। मुझे नहीं पता था कि यह वक़्त की रफ्तार जो बढ़ रही है ये मुझे नई मंज़िलों से रूबरू करवाएंगी औऱ साथ ही हर राह पे दर्द भी मेरा बाहें फ़ैलाये इन्तज़ार कर रहा होगा। और इस दर्द की कश्ती में बैठ कर ही मुझे ज़िन्दगी का सफ़र तय करना होगा। मुझे ये भी नही ख़बर थी कि यही दर्द हमारी तमाम खुशियों का सबब भी बनेगा। ठेस के उड़नखटोले पे बैठ के ही हम शौहरत की मंज़िल को चूमेंगे। फ़िर ज़िन्दगी में कुछ ऎसे हालात आये मानो सर से हर तरह का साया उठ गया हो। वो कहते है ना जब पिता का साया सर से उठ जाए तो फिर सर पे चाहे जितनी बड़ी छत हो या आसमान सब वीरान लगता है पिता ही अपने बच्चों को चारों ओर से इस तरह से ढके है जिस तरह वो आसमान इस ज़मीन को। पिता के गुज़र जाने के बाद मैंने भी कुछ ऐसा ही वक़्त और हालात का सामना किया, जिसका तसव्वुर मैंने बचपन में नहीं कियाथा, तमाम तूफ़ानो से मैं ने सामना किया और अपने कदमों को लड़खड़ाने नहीं दिया। "हम लड़खड़ाए मगर गिरे नहीं..... सर कट गए मगर झुके नहीं... आँधियों, और तूफानों ने कोशिशें तो बहुत की ...हम चट्टान थे तभी उड़े नहीं.." फ़िर दर्द और तकलीफ़ बढ़ती गयी तो कलम को अपना सच्चा साथी बना लिया और शायरी को अपने दर्द की दवा।" " दर्द पा के भी दर्द में जीने का मज़ा बढ़ता रहा ...जितना गहराई में डूबे हम नशा चढ़ता रहा..." जब मैं ने अपनी ज़िन्दगी के उन तमाम खट्टे- मीठे अहसासों को अल्फाजों में पिरोकर कागज़ पे उतारा तो दुनिया वालों ने इसे शायरी का नाम दे दिया और हमें शायर बना दिया, मेरे शायर बनने का सफ़र बड़ा ही दिलचस्प है जिसका जिक्र मैंने अपनी इस किताब में किया है| यूँ तो हम कोई पढ़े लिखे शायर नही है और हम इस शेर ओ शायरी लिखने के सारे नियमों से भी बेखबर और अनजान हैं हमने बस अपने दर्द को लफ़्ज़ों का जामा पहनाकर दुनिया के सामने पेश किया है