Swami Dayanand Saraswati Rachit 'Satyarth Prakash' Mein Nihit Ashram-Vyavastha: Ek Darshanik Adhyayan

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स्वामी दयानंद सरस्वती रचित 'सत्यार्थ प्रकाश' में निहित

आश्रम-व्यवस्था : एक दार्शनिक अध्ययन

वर्तमान युग में बढ़ती समस्याओं के कारण, आधुनिकता की चकाचौंध में रहकर मनुष्य अत्यधिक परेशानी, तनाव से ग्रस्त हो गया है तथा शारीरिक व मानसिक रूप से दुर्बल हो गया है। अनेक प्रकार की चिंताओं से वह ग्रसित रहता है। व्यक्ति जीवन जीने की कला से अनभिज्ञ हो गया। इसके कारण 40 वर्ष तक किसी प्रकार वह अपना जीवन घसीटता है तत्पश्चात् तरह-तरह के रोगों से ग्रस्त टूटा-फूटा जीवन जीता है। हमारे देश में पहले आश्रम-व्यवस्था के अन्तर्गत शारीरिक विकास, मानसिक विकास व आत्मिक विकास तीनों प्रकार के विकास पर पूर्ण ध्यान दिया जाता था, लेकिन आजकल मात्र मानसिक विकास पर ही ध्यान दिया जाता है जिसके कारण वैज्ञानिक उन्नति, बौद्धिक उन्नति तो हुई परंतु शारीरिक स्वास्थ्य व चरित्र ये दोनों उपेक्षित पड़े रह गए हैं व विकृत हो रहे हैं। चरित्र की उन्नति न हो पाने से जो विज्ञान समाज के लिए वरदान होना चाहिए था, वह अभिशाप बनकर रह गया है। वह मानवता के विनाश के लिए परमाणु बम जैसे घातक हथियार, प्रदूषण और ग्लोबल वार्मिंग जैसी विकराल समस्याएं उत्पन्न करता चला जा रहा है। इन सभी समस्याओं का मुख्य कारण है हमारी जीवन-शैली का गलत होना। हम किस प्रकार से जीवन जीते हैं, किन नियमों का पालन करते हैं? इन प्रश्नों का उत्तर ढूँढना अनिवार्य है। अगर हमें अपने जीवन को बेहतर बनाना है तो हमें अपनी जीवन जीने की शैली को भी बेहतर बनाना होगा। इसी को ध्यान में रखते हुए और मनुष्य के जीवन को बेहतर बनाने व उसकी समस्याओं को थोड़ा-बहुत भी दूर कर सके तो अच्छा रहेगा। वैसे प्रत्येक मनुष्य बेहतर जीवन यापन करना चाहता है। प्राचीन काल से मनुष्य अपने जीवन को बेहतर बनाने में लगा है। मेरा विषय स्वामी दयानंद सरस्वती रचित ‘सत्यार्थ प्रकाश’ में निहित ‘आश्रम-व्यवस्था: एक दार्शनिक अध्ययन’ है, जिसमें स्वामी दयानंद ने जीवन जीने की कला का वर्णन किया है।

Ratings and reviews

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5 reviews
Dr.Pk Thakur
September 20, 2025
I request all the readers with folded hands to give their full love to my book and this book has been written keeping in mind the interests of all, for public interest and world welfare So that readers can adopt the information provided in this book and live their lives in the best possible way and reap its full benefits. Thank you.
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Manga Ram
September 19, 2025
I liked this book very much. I want to buy its hard copy. Where can I get it from?
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Reena Rani
September 30, 2025
This book useful every person.
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About the author

डॉ. प्रवीन कुमार का जन्म 1 मई, 1984 को हरियाणा राज्य के करनाल ज़िले की निलोखेड़ी तहसील के एक छोटे से गाँव समाना बाहु में हुआ। इनके पिता श्री मांगे राम एक छोटे से जमींदार हैं और माता श्रीमती कमला देवी एक घरेलू महिला हैं। इनकी आरंभिक शिक्षा गाँव के ही सरकारी स्कूल से हुई, इसके बाद 12वीं की शिक्षा कुरूक्षेत्र के महारानी लक्ष्मीबाई स्कूल से हुई। उसके बाद करनाल के सरकारी कॉलेज से स्नातक की परीक्षा पास की और वहीं से इनके अंदर देशभक्ति की भावना जागी और इन्होंने NCC जॉइन कर ली। उसके बाद इन्होंने Lieutenant Colonel की परीक्षा दी और ये उसमें पास भी हो गए, परंतु किसी कारणवश ये देश की सेवा नहीं कर पाये। उसके बाद इनकी रुचि और अध्ययन करने की हुई और कुरूक्षेत्र विश्वविद्यालय के दर्शनशास्त्र विभाग से स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त की। उसके बाद परा स्नातकोत्तर और उनके रिसर्च मे रुचि जागृत होने पर दर्शनशास्त्र में डॉक्टरेट की उपाधि ग्रहण की, फिर ये दार्शनिक बन गए। परंतु फिर भी इन्होंने अध्यन जारी रखा और शिक्षाशास्त्र में भी स्नातक और परास्नातक की उपाधि और एक निजी कॉलेज में सहायक प्रोफेसर के तौर पर कार्य करते रहे और छात्र-छात्रों का मार्गदर्शन करते रहे। वर्तमान में इनकी रुचि लेखन कार्य करने की हुई और इन्होंने अनेक पत्र और सेमिनार में भी भाग लिया। अध्यात्म और दर्शनशास्त्र में रुचि होने के कारण और समाजसेवा की भावना के कारण वर्तमान में सामाजिक संस्थाओं के साथ मिलकर समाज सुधार का कार्य भी करते रहते 

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