"त्याग भी प्रेम है” में केवल प्रेम का मधुर पक्ष ही नहीं, बल्कि उसके साथ जुड़ा संघर्ष, पीड़ा, समाज और परिवार का दबाव भी चित्रित किया है। इसमें स्त्री-मन की सूक्ष्म भावनाओं को बड़ी संवेदनशीलता से अभिव्यक्त किया है, जिससे यह कृति और भी मार्मिक बन उठती है।
इसमें मैने प्रेम के साथ-साथ विवाह, संस्कार, कर्तव्य और माता-पिता द्वारा संतान के प्रेम को समझने की आवश्यकता जैसे सामाजिक प्रश्नों को भी उभारा है। इस प्रकार यह कृति केवल एक हृदयस्पर्शी प्रेमकथा ही नहीं, बल्कि एक गहन सामाजिक सन्देश भी देती है।
यह उस प्रेम की गाथा है जो भले ही अंत तक न पहुँच पाए, पर हृदय में जीवन-भर प्रेम जीवित रहता है।
मेरा नाम सुनील कुमार है। मेरा जन्म 22 दिसंबर 1999 को हरियाणा राज्य के रेवाड़ी शहर के एक छोटे से गांव प्राणपुरा उर्फ गोपालपुरा में हुआ। मैं एक साधारण परिवार से संबंध रखता हूँ, जहाँ संस्कार और सादगी को बहुत महत्व दिया जाता हैं बचपन से ही मेरी रुचि पढ़ाई में रही है। मैं हमेशा कुछ नया सीखने की कोशिश करता हूँ और ज्ञान प्राप्त करना मेरे जीवन का अहम हिस्सा है। शिक्षा के साथ-साथ मैं जीवन के अनुभवों को भी बहुत महत्व देता हूँ।