कृष्णं नारायणं वन्दे कृष्णं वन्दे व्रजप्रियम्।
कृष्णं द्वैपायनं वन्दे कृष्णं वन्दे पृथासुतम्।।
श्रीमद्भागवत की महिमा
मेरा विश्वास और अनुभव है कि इसके पढ़ने और सुनने से मनुष्य को ईश्वर का सच्चा ज्ञान प्राप्त होता है और उनके चरणकमलों से अचल भक्ति होती है। इससे मनुष्य को निश्चय हो जाता है कि इस संसार को रचने और पालन करनेवाली कोई सर्वव्यापक शक्ति है-
एक अनन्त त्रिकाल सच, चेतन शक्ति दिखात।
सिरजत, पालत, हरत, जग, महिमा बरनि न जात।।
यह ज्ञान-भक्ति-वैराग्य का विशाल समुद्र है। इससे मनुष्य सत्य धर्म में स्थिर हो जाता है, स्वभाव ही से दया-धर्म का पालन करने लगता है। मनुष्यों में परस्पर प्रेम और प्राणिमात्र के प्रति दया का भाव स्थापित करने के लिए इससे बढ़कर कोई साधन नहीं है। यह श्री भगवान का वाङ्मय स्वरूप आधिभौतिक, आधिदैविक और आध्यात्मिक त्रिविध तापों को मिटाने वाला है।- मदन मोहन मालवीय