Bebaak Baat: BEBAAK BAAT: Vijay Goyal's Straightforward and Candid Remarks on Indian Politics and Society
Vijay Goyal
Jan 2018 · Prabhat Prakashan
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Ebook
240
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अपनी कलम के माध्यम से प्रशासन; शिक्षा; कला; संगीत; संस्कृति; रीति-रिवाज; तकनीकी; खेल; हैरिटेज और पर्यटन जैसे विभिन्न विषयों पर विजय गोयल ने नई नजर डाली है। उन्हेंने खुद को कभी राजनीति के दायरों में समेटकर नहीं रखा। नवभारत टाइम्स; दैनिक जागरण; हिंदुस्तान; पंजाब केसरी; जनसत्ता; राष्ट्रीय सहारा सहित प्रमुख राष्ट्रीय समाचार-पत्र और पत्रिकाओं में प्रकाशित अपने लेखों के माध्यम से उन्होंने देश के करोड़ों पाठकों के बीच उन विषयों को उठाया है; जो अकसर आम पाठक के मन में उमड़ते-घुमड़ते रहते हैं; लेकिन उन्हें शब्द नहीं मिलते। इस पुस्तक में संगृहीत श्री गोयल के चुनिंदा लेख ऐसे ही विचारों और भावनाओं की बेबाकबयानी हैं। उनकी बेबाकी ही उनके लेखन की खूबी है; लिहाजा यही इस पुस्तक का शीर्षक है—‘बेबाक बात’। मिसाल के तौर पर पुस्तक में शामिल ‘तो फिर सेंसर बोर्ड की जरूरत ही क्या?’ ऐसा ही लेख है। जब फिल्म ‘वीरे दी वेडिंग’ की भाषा को लेकर हर तरफ चर्चा चल रही थी; तब किसी ने इस विषय पर लिखने का साहस नहीं किया; लेकिन विजय गोयल ने इस पर बेबाक लिखा। उनका लेख ‘नेताओं का दर्द कौन समझेगा’ राजनेताओं के जीवन की अंदरूनी उलझनों; कशमकम और परेशानियों को सामने लाता है। इस लेख को 400 सांसदों ने एक साथ पढ़ा। प्रसिद्ध पत्रिका बाल भारती में 12 साल की उम्र में उनका लेख ‘मेरी पहली कहानी’ छपा था; जिसमें उन्होंने बताया कि उन्होंने उसे कैसे लिखा। पिछले एक साल में उनके 100 से ज्यादा लेख प्रकाशित हो चुके हैं। ये लेख समाज में नए सवाल भी पैदा करते हैं और उनके जवाब भी तलाशते हैं। लेखक का मानना है कि वाजिब कारण होने पर सवाल खड़े होने चाहिए; तभी जवाब निकलते हैं और यही सिलसिला जीवन और समाज को सही दिशा में ले जाता है।
Fiction & literature
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