विष्णु प्रभाकर द्वारा रचित यह रचना केवल साहित्यिक मूल्य नहीं रखती, बल्कि यह जीवन के उन दृश्य-अदृश्य पक्षों को उजागर करती है जिन्हें हम अक्सर अनदेखा कर देते हैं।
यह पुस्तक हमें यह महसूस कराती है कि जीवन कोई पूर्ण मंचन नहीं, बल्कि निरंतर चलती हुई रिहर्सल है—जहाँ हर अनुभव, हर गलती, और हर संबंध हमें एक नई भूमिका, एक नया अर्थ प्रदान करता है।
जिंदगी एक रिहर्सल में लेखक ने अपनी लेखनी से न केवल समाज के विविध रंगों को चित्रित किया है, बल्कि उन मानवीय भावनाओं को भी छुआ है जो आम और खास—दोनों के जीवन में समान रूप से प्रवाहित होती हैं।
यह कृति उन पाठकों के लिए है जो जीवन को केवल घटनाओं का सिलसिला नहीं, बल्कि एक सतत विकासशील चेतना की प्रक्रिया मानते हैं।
जिंदगी एक रिहर्सल एक गहन साहित्यिक अनुभव है—जो न केवल विचारों को उद्वेलित करता है, बल्कि आत्मा को भी नए अर्थों के लिए खोल देता है।