सामाजिक विधि-विधान किसी भी संविधान से ऊपर नहीं है। समाज परिवर्तनशील है। समय के साथ गतिमान रहता है। आचार-व्यवहार, खान-पान, रीति-रिवाज, धार्मिक आस्था, पहनावा, परिवहन के संसाधन, घर-द्वार और न जाने कितने ही पहलू वक्त के साथ बदल जाते हैं। इन सबके बावजूद संविधान नहीं बदलता। यही कारण है कि वक्त के साथ कथाओं के आवरण भी बदल जाते हैं। जिस गति से समाज बदलता है उससे अधिक रफ्तार से लेखक की लेखनी चलाई पड़ती है। एक छोटा-सा बदलाव अनगिनत पहलूओं के दरवाजे खोल देता है। लेखक इन्हें दरवाजों, दरारों, दरख्तों, गवाक्षों, और कल्पनाओं के भंवर में डूबकर जो कुछ अपने पाठकों के सामने परोसता है वह आम आदमी की सोच से इतर होता है। बड़ा होता है।
महत्वपूर्ण पहलू यह है कि कहानियों का आधार प्राचीन काल से एक जैसा ही है बस उसे प्रस्तुत करने के ढंग बदलते रहते हैं। भाषा बदलती रही है। शब्दों का समायोजन बदलता रहा है। पाठक को हर युग कहानियां पसंद आती हैं। सबक मिले या न मिले मनोरंजन होना चाहिए। ऑफिस आने-जाने का सफर कहानियां पढ़ते-पढ़ते बीत जाए तो बात ही क्या है। शौकिन युवा ऐसे समय का सदुपयोग करते हैं।
आपके सामने है। इसमें विभिन्न हालातों से संबंधित कहानियां हैं। आपको कैसा लगा यह कहानी संग्रह, मुझे अवश्य बताइएगा।f
Dr Sandeep Kumar Sharma