इन सबसे पहले लवकुश अपनी माता सीता के साथ हुये अन्याय के लिये भी हम सबसे और अपने सम्राट से कुछ कठिन प्रश्न पूछते दिखेंगे। निर्मल हृदय से पूछे गये विनम्र प्रश्नों का काव्य संकलन है यह महाकाव्य- "महासमर के मौन प्रश्न"।
"अर्वाचीन धनुर्धर एकलव्य" के बाद नरेन्द्र द्वारा रचित यह महाकाव्य हमें कठिन पर अत्यन्त विनम्र प्रश्नों के संसार में ले जाती है, भारतीयता के उत्कृष्ट मापदंडों के दर्शन कराती है।
नरेन्द्र विद्यानिवास मूल रूप से मुजफ्फरपुर बिहार के रहने वाले हैं। मुजफ्फरपुर के मोतीपुर प्रखण्ड के एक छोटे से गाँव कथौलिया में इनका जन्म एक शिक्षक परिवार में हुआ। अपने पिता श्री यमुना प्रसाद और माता शांती देवी की ये छठी सन्तान हैं। नरेन्द्र कि प्राथमिक शिक्षा गाँव के ही शिशु मन्दिर में हुई।
फिर आगे की पढाई के लिये ये गोरखपुर के आवासीय विद्यालय सरस्वती शिशु मन्दिर आ गये। शिक्षक परिवार मे जन्मे नरेन्द्र का भारतीय संस्कृति और हिन्दी से घनिष्ठ जुड़ाव रहा है। बचपन से ही ये छोटी मोटी कवितायें और कहानियां लिखते रहे हैं।
आगे अभियंत्रण की शिक्षा के लिये ये भागलपुर आये और फिर तकनीक और उद्योग के होकर रह गये। भागलपुर के अपने विद्याध्यन के समय, ये ओजस्वी वक्ता के रूप में कई वाद-विवाद प्रतियोगिताओं के विजेता भी रहे।
वर्तमान में एक टेक्सटाइल्स कम्पनी में उप महाप्रबंधक के रूप में सूरत, गुजरात में कार्यरत हैं।
'अर्वाचीन धनुर्धर एकलव्य' इनकी पहली प्रकाशित काव्य रचना है। एकलव्य को मिले पाठकों के स्नेह से अभिभूत होकर, इन्हे दूसरे महाकाव्य को लिखने की प्रेरणा मिली। इस प्रकार महाभारत और रामायण की पृष्ठभूमि से गढ़ कर इन्होने 'महासमर के मौन प्रश्न' की रचना की। यह इनकी दूसरी प्रकाशित रचना है।