कविता न केवल जन-चेतना की संवाहक बनी वरन् इसने युग को अभिव्यक्ति दी। वैदिक काल से लेकर आज तक छान्दस कविता का वजन कभी कम नहीं हुआ। लोक कंठ इसे गाता रहा। यह हमेशा लोक जीवन को विस्तार देती रही। कवि-कोख से पैदा हुआ काव्य अपनी अस्मिता की रक्षा करते हुये लोक-लहरी हो गया। कविता केवल अक्षरों का रचाव नहीं है, यह न केवल लोक कल्याणकारी है वरन् यह लोक-अभिव्यक्ति का अनोखा साधन भी है। यह विभिन्न रसों का समय-समय पर संचार करती रहती है। आदमी को आदमी बनाने में गीत-कविता का महत्वपूर्ण योगदान है। काव्य मूलतः स्वान्तः सुखाय होता है किंतु लेखन और प्रकाशन के बाद सर्वजन सुखाय हो जाता है। कविता समाज को मथती है। यह मथना उस रचना के प्रति जन मानस में स्नेहिल भाव पैदा करती है। कविता से जीवन रस झरता है, स्वानुभूति कभी-कभी लोकानुभूति में प्रकट होती है। जब कविता मन को गहरे तक छूती है तो उसका लिखा जाना सार्थक हो जाता है। रचनाकार नीरजा मेहता का काव्य संकलन ‘नीरजा का आत्ममंथन’ वाकई आत्ममंथन करने को विवश करता नजर आता है। विचारों की कवयित्री नीरजा जी ने मानवीय मूल्यों का जिस तेजी से हृास हुआ है, उसे प्रकट करने का सफल प्रयास किया है। कवयित्री ने अपना मार्मिक दृष्टिकोण पाठक के समक्ष प्रस्तुत किया है वहीं पाठकों की पसन्द को भी ध्यान में रखकर रोचक काव्य परोसा है जो जनमानस के पठनीय है। इस काव्य संग्रह में कवयित्री ने गहन मनन-चिन्तन कर रचनाओं को पन्नों पर उतारा है जो प्रशंसनीय है निश्चय ही पाठकों की कसौटी पर खरा उतरेगा। अनेक रचनाओं में महिला शक्ति की महत्ता दर्शायी गयी है जो आज की जरूरत भी है और सत्य भी। काव्य संग्रह ‘नीरजा का आत्ममंथन’ पढ़कर जहां एक ओर पाठक भाव-विभौर होकर चिन्तन करने पर विवश होगा वहीं एक सटीक सीख लेता भी प्रतीत होगा। यह काव्य संग्रह एक तरह से कवयित्री के मानसपटल का आइना है स्त्री-समाज का आइना है जो अपनी सार्थकता सिद्ध करेगा,