जब मेरे दूसरे पोते अथर्व का जन्म हुआ 2013 में तो अनायास ही मन में विचार आया कि मुझे कुछ बाल कविताएं भी लिखनी चाहियें। ताबड़तोड़ पांच-सात कविताएं मैंने लिखीं भी। फिर कुछ व्यवधान आ गया । कलम की दिशा बदलती चली गई। धीरे-धीरे कुछ और भी कविताएं लिखीं। प्रकाशन का विचार देर से आया। इस बीच में दो काव्य संग्रह भी प्रकाशित हुए। यूँ तो बालकों के ऊपर बहुत सी पुस्तकें हैं, पर प्रकाश कृत ‘बालमन’ हर आयु के बालकों के लिए लिखी है। छोटे से बड़े होते बच्चों के लिए क्रमवार ये रचनाएं हैं। इस पुस्तक में कुछ ऐसी रचनाएं भी हैं जिनको मैं कहानियाँ बना-बना कर बच्चों को उनके बचपन में सुनाया करता था और बच्चों को मैंने उन कहानियों को सुनते आनंदित होते भी देखा और बार-बार उन्हीं कहानियों को सुनाने का आग्रह करते देखा। नयी ।ठब्, बन्ने मियां और भालू, बेचारा वाॅचमैन, चिड़िया का घोंसला और कौवा आदि ऐसी ही रचनाएं हैं। तो कुछ उन कहानियों को मैंने रचनाओं में परिवर्तित किया, जिनको हमने भी अपनी नानी दादी से सुना और आप सबने भी सुना होगा। एक तरह से मैंने उन्हें काव्य रचना के रूप में पुनर्जीवित करने का प्रयास किया है। चल मेरी ढोलक ठुम्मक ठुम, ठाकुर और ठकुरी नाई, जब कटार बनी दरांती आदि ऐसी ही कुछ रचनाएं हैं। बच्चों के साथ खेलना बतियाना उन्हें कहानी सुनाना ये सब हर दादा-दादी, नाना-नानी के लिए सौभाग्य की बातें हैं। एक स्वर्गीय आनंद जैसा है। लेकिन जब बच्चे बड़े होंगे और अपने बचपन को कुरेदेंगे, तब उन्हें ये अवश्य याद रहेगा कि उनके दादा-दादी उन्हें ये कविता या कहानी सुनाया करते थे। पर तब उन कविताओं को सुनाने वाले दादा-दादी जी व नानी नाना जी इस दुनिया में शायद ना हों। पर बच्चो हम नहीं भी होंगे, हमारी ये पुस्तक तुम्हें हमारी याद दिलाएगी। एक लेखक गद्य में पद्य में लिखने के बाद जब बाल साहित्य पर लिखता है तो उसे भी पूर्णता का एहसास होता है। बालकों के लिए कुछ लिखने के लिए एक लेखक को बालक ही बनना पड़ता है। बच्चों के सर्वांगीण विकास के लिए बाल साहित्य का होना व उसे पढ़ना अत्यंत आवश्यक है। इसको पढ़ कर बच्चे प्रकृति प्रेमी बनते हैं। पक्षी प्रेमी बनते हैं। प्रेम, त्याग, करुणा, सहयोग की भाषा से वे रूबरू होते हैं। बच्चे कल की नींव हैं। कल का भविष्य हैं। उन्हें अपनी उम्र में एक अच्छा बाल साहित्य पढ़ने को मिलना ही चाहिए। सीधी सच्ची व सरल भाषा में लिखी बाल रचनाएं बालकों का मनोरंजन करती हैं। उनके ज्ञान में वृद्धि करती हैं और सकारात्मक ऊर्जा भी पैदा करती हैं। उन्हें समझदार बनाती हैं। मित्रो, ‘बालमन’ इसी दिशा में उठाया एक कदम है। प्रयास है। आरम्भ है पर अंत नहीं। .......प्रकाश चन्द्र गुप्ता