Sameeksha Ke Vyavharik Sandarbh : Aacharya Ramchandra Shukl

· Vani Prakashan
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शुक्ल जी की आलोचक दृष्टि रचनाओं के भीतर गुज़रने का एक उपक्रम है। रचना की केन्द्रीय संवेदना को समझना उनके आलोचना-कर्म का प्रमुख धर्म रहा है। यह उनका अपना वैशिष्ट्य है कि आलोचक के रूप में उनके द्वारा रचना के साथ न्याय किया गया है। नये तथा पुराने सभी रचनाकारों ने उनकी बेबाक टिप्पणियों की सदैव प्रशंसा ही नहीं की बल्कि मुक्त कण्ठ से अपनी स्वीकारोक्ति भी दी है। मेरी साहित्यिक अभिरुचि में आचार्य शुक्ल के इसी शास्त्रीय चिन्तन का अनुनाद है। आचार्य शुक्ल को समझने का तात्पर्य भारतीय आलोचना पद्धति को आत्मसात् करना है। इस पुस्तक में उनकी आलोचनात्मक दृष्टि के अनुरूप सैद्धान्तिक और व्यावहारिक आलोचना को मुख्य प्रतिपाद्य बनाया गया है। विद्यार्थियों के लिए शुक्ल जी को जानना इस रूप में अनिवार्य है कि उनके बिना साहित्य के विद्यार्थी को रचनाकर्म से जुड़ी किसी भी विधा को समझने में जिस तीक्ष्ण दृष्टि की आवश्यकता होती है, वह उससे सर्वथा वंचित रह जाता है। इसी आवश्यकता को देखते हुए मैंने शुक्ल जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व के साथ-साथ उनकी साहित्यिक संवेदना को विशद रूप से वर्णित किया है। रस-सिद्धान्त और साधारणीकरण के विवेचन में शुक्ल जी जैसा कोई दूसरा नहीं है। भक्ति की बात हो या कविता के कलेवर को जानने की बात, सब में उनके गम्भीर्य और सपाटबयानी से विषय की समझ को देखा जा सकता है। वास्तव में शुक्ल जी भारतीय मनीषा की पहचान हैं। युगों-युगों तक उनके द्वारा स्थापित मान्यताओं से हम उनके ज्ञान एवं मूल्यपरक साहित्य को समझते रहेंगे और यही उनके कृतित्व की सबसे बड़ी उपलब्धि होगी। मेरी साहित्यिक अभिरुचि का मुख्य ध्येय साहित्य को जीवन और चेतना से सम्बद्ध करना है और इस प्रक्रिया में आचार्य शुक्ल का प्रभाव बुनियाद की सुदृढ़ नींव के समान है। मेरा विनम्र आग्रह है कि आलोचना से ही साहित्य का वास्तविक सौन्दर्य प्रकट होता है। इस शृंखला में मेरे इस प्रयत्न से यदि साहित्य मर्मज्ञ कुछ भी नवीन ग्रहण कर सकें तो मैं अपने परिश्रम को सफल मानूँगी। -प्रो. मंजुला राणा संयोजक एवं अध्यक्ष हिन्दी विभाग हे.न.ब. गढ़वाल (केन्द्रीय) विश्वविद्यालय, श्रीनगर (गढ़वाल)

About the author

प्रो. मंजुला राणा का जन्म सन् 1964 में एक सम्भ्रान्त परिवार में हुआ, जहाँ सामाजिक सरोकारों से इनका जन्म से रिश्ता बँधता चला गया। प्रारम्भ से ही प्रखर बुद्धि की धनी प्रो. राणा का शैक्षिक जीवन वरीयता क्रम से शीर्ष पर रहा, जहाँ एम.ए. (हिन्दी) में स्वर्ण पदक प्राप्त करके ये तत्काल गढ़वाल विश्वविद्यालय, श्रीनगर (उत्तराखण्ड) में प्रवक्ता के पद पर चयनित हुईं तथा अध्ययनअध्यापन से अपने कर्म-क्षेत्र की शुरुआत करते हुए वर्तमान में हेमवती नन्दन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय, श्रीनगर के 'हिन्दी तथा आधुनिक भारतीय भाषा विभाग' में प्रोफेसर एवं अध्यक्ष के पद पर कार्यरत हैं। प्रो. राणा वर्ष 2010-2016 तक उत्तराखण्ड लोक सेवा आयोग में सदस्य के पद को भी सुशोभित कर चुकी हैं तथा वर्तमान में राष्ट्रीय साहित्य अकादमी, नयी दिल्ली की सदस्य हैं। हिन्दी साहित्य जगत में इनके द्वारा लिखित अनेक पुस्तकें अपनी विशिष्ट पहचान रखती हैंप्रकाशित पुस्तकें : दिनकर के काव्य में रस-योजना, आँसू का भाषिक सौन्दर्य, व्यावहारिक एवं प्रयोजनमूलक हिन्दी, उत्तरांचल का हिन्दी साहित्य, उजास कहाँ है (कहानी संग्रह), दसवें दशक के हिन्दी उपन्यासों में साम्प्रदायिक सौहार्द, मंजुला राणा की पाँच प्रतिनिधि कहानियाँ, कवि लक्ष्य और रचनात्मक प्रवृत्तियाँ : महाकवि सूरदास। अनेक पुरस्कारों से सम्मानित होकर आप राष्ट्रीय एवं अन्तरराष्ट्रीय फलकों पर अपनी पुरजोर शैक्षिक दस्तक देती रहती हैं।

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