बुद्ध काल के पूर्व से जन मानस धार्मिक आडम्बर पाखण्डपूर्ण रूढ़ियो, अप्राकृतिक व असमानतापूर्ण चतुर्वणी सामाजिक व्यवस्था वैदिक हिसंक यज्ञादि की जटिलता से मुक्त होने के लिए तड़प रहा था। ऐसे समय में शाक्यमुनि गौतम बुद्ध का एक सामाजिक वैज्ञानिक तथा दार्शनिक के रूप में अवतरण हुआ था जिन्होनें मानव समाज में व्याप्त अज्ञानरुपी बादल की घटाओं को छाँट करके सत्य ज्ञान को प्रकाशित किया। इनकी धम्मदेशना शील, समाधि तथा प्रज्ञा पर आधारित है जो मानव चित्त को विशुद्ध तथा निर्मल करता है। विकार विमुक्त निर्मल मन स्वाभाविक रूप से प्रेम, सद्भाव मैत्री तथा करुणा से भर कर सुख व शान्ति का अनुभव करता है।