बिलेसुर बकरीहा की कहानी एक छोटे से गाँव की पृष्ठभूमि पर आधारित है, जहाँ मुख्य पात्र बिलेसुर नामक एक चरवाहा है। यह उपन्यास उसकी जीवन यात्रा, संघर्ष और उसके साथ होने वाली घटनाओं के माध्यम से समाज के सामाजिक और मानसिक दबावों को चित्रित करता है। बिलेसुर एक सामान्य आदमी है, जिसे अपनी अस्तित्व की लड़ाई लड़नी पड़ती है। उसका जीवन गरीबी, जातिवाद और अन्य सामाजिक असमानताओं से जूझते हुए चलता है।
इस उपन्यास में निराला ने उस समय की ग्रामीण स्थिति, कामकाजी वर्ग की मुश्किलें, और आम आदमी की संवेदनाओं को बड़ी बारीकी से चित्रित किया है। उपन्यास की कथा न केवल बिलेसुर के व्यक्तिगत संघर्ष की कहानी है, बल्कि यह समाज में व्याप्त कुरीतियों और असमानताओं को भी उजागर करती है। यह नायक का केवल व्यक्तिगत संघर्ष नहीं है, बल्कि यह समग्र समाज के विरोध और संघर्ष की भी कहानी है।