यह भ्रमणरति की पुस्तक है। किन्तु भ्रमणरति यानी क्या? वही जिसे जर्मन में वाण्डरलुष्ट कहेंगे? एक तरह की तृष्णा? पुस्तक का विधागत-परिचय देते हुए आँग्लभाषा में उसे लैंडस्केप राइटिंग्स निरूपित किया गया है। अलबत्ता इसमें केवल धरती ही नहींहवा, पानी, धूप भी है। इससे यत्किंचित पंचतत्वों की लीला चली आई है, किन्तु उनकी अनुभूति आभ्यन्तर की नहीं है, उसके लिए तो विपथ ही होने का योगफल है। कह लीजिये एक सैलानी-मन की अभिव्यक्तियाँ हैं, जबकि देह ने भले यात्राओं का यश उतना नहीं भोगा हो, जितना कि भ्रमणरति के आख्यान के लिए पर्याप्त हो।
यह पारिभाषिक अर्थों में यात्रावृत्त की पुस्तक तो नहीं ही हैअलबत्ता भौतिक-देश में गतिमयता के कुछ वृत्तान्त इस पुस्तक में आपको अवश्य मिल जाएँगे। लेकिन तथ्य यही है कि पुस्तक का लेखक विमुग्ध-यायावर नहीं। उसने औरों से कम ही यात्राएँ की होंगी। ये और बात है कि मन-पवन की नौका से दूर-देश तक के कोनों-अंतरों में वह झाँक आया है। कहा भी है कि जहाँ न पहुँचे रवि...। इन पंक्तियों का लेखक स्वयं पर कवि होने का आरोप लगाने से संकोच भले कर जावे, किंतु अगाध कौतूहल ने उसे दूर-दिगन्त तक डोलाया है, इससे इनकार नहीं है। शाइर ने भी कुछ सोचकर ही कहा होगामुझे दर-ब-दर फिराया, मेरे दिल की सादगी ने...
यों मन से बड़ा यात्री कोई नहीं। देश-मुलुक में ही नहीं, जन्म-जन्मांतरों में भी उसकी यात्राएँ चलती रहती हैं। मन दोलाए रहता है। मन चलायमान है। जो देश-मुलुक की सैर करते हैंबटोही कहलाते हैं। जो मन के मानचित्र पर यात्राएँ करता हैकदाचित् वही बावरा बटोही है।
मुझे दर-ब-दर फिराया
यह भ्रमणरति की पुस्तक है। किन्तु भ्रमणरति यानी क्या? वही जिसे जर्मन में वाण्डरलुष्ट कहेंगे? एक तरह की तृष्णा? पुस्तक का विधागत-परिचय देते हुए आँग्लभाषा में उसे लैंडस्केप राइटिंग्स निरूपित किया गया है। अलबत्ता इसमें केवल धरती ही नहींहवा, पानी, धूप भी है। इससे यत्किंचित पंचतत्वों की लीला चली आई है, किन्तु उनकी अनुभूति आभ्यन्तर की नहीं है, उसके लिए तो विपथ ही होने का योगफल है। कह लीजिये एक सैलानी-मन की अभिव्यक्तियाँ हैं, जबकि देह ने भले यात्राओं का यश उतना नहीं भोगा हो, जितना कि भ्रमणरति के आख्यान के लिए पर्याप्त हो।